एक तरफ IIT, NEET और UPSC के बच्चे दूसरी तरफ करोड़पति रीलबाज

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

एक तरफ IIT, NEET और UPSC के बच्चे हैं जो दिन-रात कोचिंग में घिस रहे हैं, रातें जाग कर किताबें खा रहे हैं – सिर्फ़ इस उम्मीद में कि एक दिन सरकारी जॉब मिलेगी और 70 हज़ार की सेलरी आएगी।

दूसरी तरफ वो “टैलेंटेड” युवा हैं, जिनका सारा दिन कैमरा ऑन, कपड़े ऑफ़, गालियों ऑन मोड में रहता है। न स्क्रिप्ट, न सिलेबस – बस रील्स में डायलॉग मारने का हुनर और करोड़ों का ब्रांड डील इनाम में।

सामने आ गयी वो वजह जिसके चलते परेश रावल ने छोड़ी थी हेरा फेरी 3

अब पैरेंट्स भी बोलते हैं – “बेटा तू कैमराफ्रेंडली है!”

पहले जहां माता-पिता बच्चों से कहते थे –
“पढ़ाई कर, नहीं तो कुछ नहीं बन पाएगा।”
अब वही कहते हैं –
“रील डाल बेटा, तेरे में नैचुरल ऐक्टिंग है।”

एक जमाना था जब माता-पिता बच्चों को कोचिंग के लिए भेजते थे, अब Ring Light और ट्राइपॉड गिफ्ट कर रहे हैं। क्योंकि असली भविष्य अब #ForYouPage पर है।

करोड़ों की इनकम बनाम 9 से 5 की गुलामी

सोचिए, पढ़ाई में टॉप करने वाला बच्चा सालों की मेहनत के बाद जब 60-70 हज़ार महीना कमाता है, और वहीं उसका स्कूल ड्रॉपआउट दोस्त “भावुक ब्रेकअप रील” पर 10 लाख व्यू लेकर ब्रांड से ₹5 लाख ले जाता है – तो कौन मूर्ख लग रहा है?

पढ़ने वालों के लिए मेडल, रील वालों के लिए मेसेज – “भाई तू अगला कैरीमिनाटी है!”

अब टॉपर बच्चे भी डिप्रेशन में हैं। उन्हें लगने लगा है कि उनकी मेहनत सिर्फ़ रिज़ल्ट बोर्ड पर शोभा देती है, लेकिन लाइफस्टाइल और पैसे के लिए रील्स वाले ही ‘रियल’ हीरो हैं।

पढ़ाई या पब्लिसिटी – अगला करियर काउंसलिंग टॉपिक?

कोचिंग इंस्टीट्यूट्स अब शायद ये कोर्स शुरू करें:

  • “100k फॉलोअर्स कैसे पाएं – बिना पढ़े”

  • “अश्लीलता के 10 फायदे”

  • “गाली में ग्रैमर: सोशल मीडिया की नई भाषा”

अब क्या करें?

शायद वक़्त आ गया है जब हमें बच्चों से पूछना चाहिए:

“बेटा तू IAS बनना चाहता है या Influencer?”

अगर जवाब दूसरा है, तो टेंशन मत लो – बस एक कैमरा, थोड़ी शॉर्ट्स और ढेर सारी बेतुकी एनर्जी चाहिए।

असल समस्या क्या है?

  1. तुलना का जहर: मेहनत और वायरलिटी की तुलना कभी सही नहीं होती। दोनों अलग-अलग सिस्टम हैं।

  2. पैसे की चमक ने ‘स्टेबिलिटी’ को ओवरशैडो कर दिया है।

  3. सोशल मीडिया का democratization: अब बिना डिग्री, बिना पढ़ाई – कोई भी “स्टार” बन सकता है।

क्या influencer बनना बुरा है?

नहीं – लेकिन “कैसे और क्यों” ये अहम है:

  • अगर आप वाकई में टैलेंटेड हैं, कंटेंट में क्वॉलिटी है, कुछ नया कहने का तरीका है – तो सोशल मीडिया एक ज़बरदस्त मंच है।

  • लेकिन अगर सिर्फ़ अश्लीलता, गालियां और उथले डायलॉग्स से आप ‘फेमस’ हो रहे हैं – तो ये न समाज के लिए अच्छा है, न आपके खुद के लिए दीर्घकालिक।

क्या पढ़ाई अब बेमानी है?

नहीं – पढ़ाई character, consistency और critical thinking सिखाती है। ये गुण सोशल मीडिया की भीड़ में आपको टिकाए रख सकते हैं।

क्या करना चाहिए?

  1. बच्चों को विकल्प समझाना ज़रूरी है, पर उनपर थोपना नहीं।

  2. Education + Digital Skillset = Ideal Combo हो सकता है।

  3. कोचिंग vs कंटेंट नहीं, बल्कि Career + Creativity की सोच होनी चाहिए।

आखिर में – IAS vs Influencer?

  • IAS: स्थायित्व, सिस्टम की समझ, बदलाव लाने का जरिया।

  • Influencer: आज़ादी, एक्सप्रेशन, बड़ा ऑडियंस – लेकिन अनिश्चितता भी।

असल सवाल ये है:

क्या आप नाम चाहते हैं, या काम?
क्या आप चकाचौंध चाहते हैं, या चरित्र?

बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ digital literacy, media awareness और emotional intelligence भी सिखाएं। ताकि वो खुद तय कर सकें कि किस रास्ते पर जाना है, और उस पर टिके कैसे रहना है।

पैड पॉलिटिक्स! राहुल गांधी की तस्वीर ने बीजेपी को दिलाया पीरियड पेन

Related posts