
उत्तर प्रदेश सरकार ने कम छात्र संख्या वाले सरकारी स्कूलों को बंद कर अधिक छात्र‑संख्या वाले स्कूलों में मर्ज करने का बड़ा फैसला लिया। नतीजा: कई सरकारी स्कूलों में ताले लटक गए और शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया।
सरकारी स्कूलों को लॉक, पढ़ाई शॉक! यूपी सरकार से NCP का दो-टूक विरोध
मायावती की तीखी प्रतिक्रिया
बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस कदम को गरीब‑विरोधी करार दिया और सरकार से तुरंत इसे वापस लेने की अपील की:
“यह फैसला गरीबों के करोड़ों बच्चों के स्कूल और शिक्षा के अधिकार के खिलाफ है—पूरी तरह अनुचित और गैरज़रूरी।”
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार इसपर विचार नहीं करती, तो उनकी अगली सरकार इसे रद्द कर देगी।
सरकारी आंकड़े बोल रहे हैं…
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5,695 सरकारी स्कूल केवल एक शिक्षक पर चल रहे हैं।
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शैक्षणिक सत्र 2023-24 में 2,586 प्राथमिक और 3,109 उच्च प्राथमिक स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक था।
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7,037 प्राथमिक एवं 1,859 उच्च प्राथमिक स्कूलों में 30 से कम बच्चे पढ़ रहे थे।
(अर्थात पढ़ाई का बोझ कुछ ही बच्चों पर था—जो अब कई स्कूलों की बन्दी बन गया।)
मर्जर की संभावित गड़बड़ियों
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सरकारी स्कूलों की संख्या कम हुई, जिससे निजी स्कूलों की मनमानी और बढ़ेगी।
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शिक्षकों की भर्ती-प्रमोशन की प्रणाली भी प्रभावित होगी।
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ग्रामीण इलाकों में, सस्ती सरकारी शिक्षा की पहुंच दूर होगी – जिससे गरीब बच्चों की पढ़ाई पर रीढ़ की हानि संभव है।
राजनीतिक प्रदर्शन – NCP ने भी फटकारा
हरिश्चन्द्र सिंह (राज्य NCP अध्यक्ष) ने इस फैसले की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि इससे राज्य के बच्चों के भविष्य पर अंधेरा गिर सकता है।
ताले खोलो या ताले ही लगाओ?
यह विलय फैसला सिर्फ स्कूल बंद नहीं, कम आंकों वाला ताला है जो गरीब बच्चों की पढ़ाई पर लटक गया। शिक्षा विभाग को चाहिए कि वे गणित की तरह सोचें—‘क्यों घटाया जब जोड़ना चाहिए था?’
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