बीजेपी की दोहरी जीत: भट्ट और बिंदल बिना मुकाबले नए अध्यक्ष

शकील सैफी
शकील सैफी

उत्तराखंड और हिमाचल में बीजेपी ने सियासी मैदान में दो ताज़े और चौंकाने वाले दांव चलते हुए एक साथ दो प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा कर दी है — और वो भी निर्विरोध! उत्तराखंड में महेंद्र भट्ट को दूसरी बार पार्टी की कमान सौंपी गई, जबकि हिमाचल में राजीव बिंदल तीसरी बार अध्यक्ष की कुर्सी पर लौटे हैं। ये महज़ नियुक्तियाँ नहीं, बल्कि चुनावी मोड में जा चुकी बीजेपी की संगठनात्मक मुनादी हैं। ऐसे वक्त में जब विपक्ष आक्रामक तेवर में है, बीजेपी ने नेतृत्व में स्थिरता और अनुभवी चेहरों पर भरोसा जताकर अपना गेम प्लान साफ कर दिया है।

अब देखना ये होगा कि क्या ये “निर्विरोधी अध्यक्ष” चुनावी रण में “विरोधियों को विराम” दिला पाएंगे?

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उत्तराखंड में महेंद्र भट्ट की ‘कमबैक विदाउट कॉन्टेस्ट’

उत्तराखंड में बीजेपी ने बड़ा कार्ड खेला — और कोई ड्रामा नहीं, कोई अंदरूनी विरोध नहीं, सीधा निर्विरोध! महेंद्र भट्ट को फिर से प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी मिल गई, जैसे सीट रिज़र्व हो!
संगठन पर पकड़ ऐसी कि पार्टी में कोई दूसरा नाम सोच भी नहीं पाया। युवा कार्यकर्ता जश्न में हैं, वरिष्ठ नेताओं ने भी चैन की सांस ली और विरोधियों ने चाय में शक्कर बढ़ा दी।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बधाई दी और घोषणा की कि “अब चुनाव में बीजेपी पहले से ज़्यादा ताकतवर होगी!”
(मतलब ये कि अगर भट्ट साहब चुनाव हारें भी, तो पार्टी कहेगी – संगठन मज़बूत था, जनता गड़बड़ कर गई।)

हिमाचल में बिंदल जी की हैट्रिक, पार्टी ने कहा – “पुराना सोना चमकता है”

डॉ. राजीव बिंदल को तीसरी बार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। इतिहास गवाह है – वो मंत्री रहे, विधायक रहे, अध्यक्ष रहे – बस मुख्यमंत्री नहीं बने, वरना पूरा सेट हो जाता। इस बार भी पार्टी ने बिना झंझट के उन्हें फिर से कमान सौंपी, जैसे उन्होंने संगठन का मोबाइल नंबर पर्सनल सेव कर रखा हो।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने एलान किया, नेता एकजुट दिखे, और विपक्ष चुपचाप बूटलेस हो गया। बिंदल ने भी कह दिया – “हम फिर से शून्य से शिखर तक जाएंगे।”
मतलब ये कि पार्टी के पुराने झोल भी वही समेटेंगे, नए झंडे भी वही फहराएंगे।

एक नहीं, दो कमान — पार्टी का चुनावी रिमोट अब ‘रीचार्ज मोड’ में

दोनों राज्यों में जो हुआ, वो सिर्फ नियुक्ति नहीं, एक सियासी स्ट्रैटेजी है। पुराने घोड़े, नई रेस — बीजेपी का यह दांव बताता है कि अब संगठन को ‘इवेंट कंपनी’ नहीं, अनुभव की ज़रूरत है।
विपक्ष सोच रहा था कि भीतर से फूट निकलेगी, लेकिन बीजेपी ने फिर साबित किया — “हमारे यहां झगड़े अंदर नहीं होते, मीडिया में भी नहीं आते।”

विपक्ष की प्रतिक्रिया: “अरे ये तो फिक्सिंग है!”

विपक्ष ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि कहने को कुछ बचा ही नहीं। जो चुप हैं वो सोच में हैं, जो बोल रहे हैं वो ट्विटर पर ‘पुराने वीडियो’ शेयर कर रहे हैं।
राजनीति में जब विरोधी चुप हो जाएं, तो समझिए कि मामला सच में ‘खतरनाक ढंग से शांत’ है।

बीजेपी का संदेश साफ — बदलाव नहीं, भरोसा चाहिए!

महेंद्र भट्ट और राजीव बिंदल की पुनः नियुक्ति बीजेपी के इस संदेश की तरह है: “हमें नए चेहरे नहीं, पुरानी जीत की आदत चाहिए।”
अब देखना ये है कि ये अनुभव 2025 के चुनाव में पार्टी को फिर से जीत दिलाता है, या विपक्ष इस स्थिरता को ‘स्टैग्नेंसी’ बता कर नया नैरेटिव बना लेता है।

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