
आज की दुनिया में उम्र सिर्फ एक संख्या नहीं, बल्कि एक डर बन चुकी है — खासकर तब, जब आपकी इंस्टाग्राम डीपी पर हल्की-सी फाइन लाइन दिख जाए। चेहरे की एक झुर्री भी अब मानो करियर का ब्रेक लग सकती है और समाज का ‘ओल्ड’ टैग चिपक सकता है। इसी डर का इलाज बनकर आया है — एंटी-एजिंग इंजेक्शन।
सेलिब्रिटी कल्चर, इंस्टाग्राम फिल्टर्स और यंग दिखने की होड़ में इन इंजेक्शनों की डिमांड तेजी से बढ़ रही है। लेकिन क्या ये सच में जवानी का अमृत हैं? या फिर ये सिर्फ हमारी स्वाभाविक उम्र और शरीर के सिस्टम के साथ की जा रही खतरनाक छेड़छाड़ हैं?
हम जानेंगे कि एंटी-एजिंग इंजेक्शन लेना कितना सही है, कितना गलत — कहीं ये ‘यंग दिखने’ की चाहत हमें ‘सीधा हॉस्पिटल’ तो नहीं पहुंचा रही?
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एंटी-एजिंग इंजेक्शन: जवानी का फुलस्टॉप या हेल्थ का बैकस्पेस?
हर इंसान हमेशा जवान दिखना चाहता है, लेकिन जब “जवानी” सुई के रास्ते आने लगे तो समझिए कि विज्ञान के नाम पर खुद से थोड़ा धोखा हो रहा है।
कभी बोटॉक्स, कभी कोलेजन, तो कभी हॉर्मोन थैरेपी — लगता है जैसे त्वचा से झुर्रियां मिटाने की होड़ में लोग किडनी तक की रेखाएं खींच देते हैं।
ये इंजेक्शन आखिर हैं क्या?
एंटी-एजिंग इंजेक्शन कोई चमत्कारी रस नहीं हैं। इनमें होते हैं:
बोटॉक्स: जिससे चेहरे की मांसपेशियों को टेंशन नहीं, रिलैक्स मिलता है।
हायालुरॉनिक एसिड: जो चेहरे को फिल्टर करता है (Instagram फिल्टर से बेहतर, लेकिन स्थायी नहीं)
हॉर्मोन रिप्लेसमेंट: जिससे शरीर थोड़ी देर के लिए भूल जाए कि इसकी उम्र क्या है।
लेकिन ध्यान रहे – “कृत्रिम जवानी, असली बीमारी को न्योता दे सकती है।
आईने में वाह, पर शरीर बोले आह!
हाँ, कुछ समय के लिए:
चेहरे पर चमक आ सकती है
लाइन्स और रिंकल्स छुप सकते हैं
सेल्फी में जवानी का असर दिख सकता है
पर ये सब वक़्त के रबर बैंड की तरह है – खिंच तो सकता है, लेकिन एक दिन लौटकर जरूर लगेगा।
‘एजलेस’ दिखने के चक्कर में ‘लाइफलेस’ न हो जाएं
हार्मोनल गड़बड़ी
इम्यून सिस्टम पर हमला
दिल और लीवर पर असर
लंबे समय तक इस्तेमाल पर डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याएं भी
बोटॉक्स से भले गाल फूल जाएं, पर असली मुस्कान तब आती है जब शरीर अंदर से स्वस्थ हो!
बॉडी का सिस्टम बच्चों का वीडियो गेम नहीं है जिसे हम ‘रेसेट’ कर लें। एक बार छेड़छाड़ की, तो Error 404: Health Not Found भी आ सकता है।
सौंदर्य की दौड़ में मेडिकल साइंस का मज़ाक
लोग कहते हैं “Age is just a number”,
पर इस नंबर को छुपाने के लिए अब डॉक्टर के क्लिनिक की लाइन भी नंबर से ही लगती है।
सच्ची एंटी-एजिंग क्या है?
अच्छा खाना, नींद और तनाव से दूरी
नियमित योग, एक्सरसाइज़ और स्किन केयर
खुद को स्वीकार करना – आईने में चेहरे से ज़्यादा आत्मा देखना
और हां – “फेस टाइट” होने से ज़्यादा जरूरी है “दिल लाइट” होना।
झुर्रियां आने दीजिए, अनुभव के नक्शे होते हैं वो
ज़िंदगी का मतलब Instagram-ready दिखना नहीं है। अगर हर महीने “यंग दिखने की सुई” लेनी पड़े, तो समझ जाइए – आप यंग नहीं, परेशान हैं। जवानी को इंजेक्ट नहीं किया जा सकता, उसे जिया जा सकता है।
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