
बांग्लादेश की राजनीति में जो न हुआ, वह आखिरकार हो ही गया। शेख हसीना की “सुपर सीमेंटेड” कुर्सी हिल गई, और मोहम्मद यूनुस की अगुआई में एक अंतरिम सरकार आ बैठी—सिर्फ बैठी नहीं, लोकतंत्र का झंडा उठाए बैठी है!
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होंगे इतिहास के सबसे ‘निष्पक्ष’ चुनाव?
खुलना में प्रेस से बात करते हुए यूनुस सरकार के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने दिल से दावा कर दिया कि “अबकी बार वोटिंग में न हेराफेरी, न हसीना जी!” उन्होंने कहा कि सरकार पूरी ईमानदारी से लोकतंत्र को फिर से जिंदा करने में जुटी है—जैसे CPR दे रहे हों।
जनविद्रोह का पाठ: जब छात्रों ने लोकतंत्र की क्लास ली
जुलाई 2024 में छात्रों की हुंकार से शुरू हुआ जनांदोलन आखिरकार रंग लाया। शेख हसीना की सरकार 5 अगस्त को धड़ाम से गिरी और वो “नमस्ते इंडिया!” करते हुए देश छोड़ गईं। इस ‘फ्लाइट टू इंडिया’ के बाद मोहम्मद यूनुस की सरकार बनी, जो अब ‘वोटिंग विद वैल्यूज़’ का नया नारा दे रही है।
धांधली का पुराना हिसाब: तीन चुनावों पर जांच की तैयारी
कोई कहे तो सही कि धूल झाड़ने के लिए भी साहस चाहिए! यूनुस सरकार ने हाईकोर्ट के पूर्व जज शमीम हसनैन की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय समिति गठित की है, जो 2014, 2018 और 2024 के चुनावों की जांच करेगी। यानी पिछली सरकार के “फेयर” खेल की पोल-पट्टी खुलने वाली है।
कब तक आएगी रिपोर्ट?
सरकार ने टाइमलाइन भी सेट कर दी है—30 सितंबर 2025 तक समिति अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। इसमें बताया जाएगा कि “वोट डालने वाला कैसे बचेगा धांधली से और डालेगा मुस्कान के साथ वोट!” यानी अब चुनाव सिर्फ नाम के लिए नहीं, यकीन के लिए होंगे।
अब लोकतंत्र के नाम पर मज़ाक नहीं चलेगा!
शफीकुल आलम ने दो टूक कहा कि इस बार चुनावी प्रक्रिया से कोई मज़ाक नहीं कर पाएगा। अब कोई पार्टी “डेमोक्रेसी इन डेंजर” का झंडा लेकर खुद ही बैलट बॉक्स चुराने की हिम्मत नहीं कर पाएगी। यूनुस सरकार का दावा है—“जो भी आए, वोट से आए, वोट से जाए!”
अब देखना ये है…
अब सवाल ये है कि क्या वाकई ये नया लोकतांत्रिक जागरण ‘जनता की सरकार, जनता के लिए, जनता द्वारा’ वाली पुरानी परिभाषा को फिर से ज़िंदा कर पाएगा, या फिर अगली बार भी हमें सुनना पड़ेगा: “हसीना इस बैक!”
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