संविधान से छेड़छाड़? आपातकाल में घुसे दो शब्दों पर RSS-BJP एक सुर में

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के हालिया बयान ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना को लेकर एक बार फिर राजनीतिक बहस को जन्म दे दिया है।
होसबाले ने कहा कि ये दोनों शब्द — ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’आपातकाल के दौरान जोड़े गए थे, और अब समय आ गया है कि “क्या इन्हें वहां रहना चाहिए या नहीं” — इस पर देशव्यापी मंथन हो।

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बीजेपी सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने समर्थन में दिया बयान

भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने होसबाले के बयान का समर्थन करते हुए कहा, “संविधान का हर शब्द एक सोच और उद्देश्य के साथ रखा गया था। लेकिन कुछ लोगों ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए संविधान में अनावश्यक संशोधन किए।”

खंडेलवाल ने यह भी जोड़ा कि आपातकाल के समय हुए इस संशोधन का कोई लोकतांत्रिक आधार नहीं था, और इन शब्दों की वास्तविकता पर फिर से विचार किया जाना चाहिए।

क्या बाबा साहेब के संविधान में ये शब्द नहीं थे?

होसबाले ने कहा, जब बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान का प्रारूप तैयार किया, उस प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द शामिल नहीं थे। ये शब्द 1976 में 42वें संविधान संशोधन के ज़रिए आपातकाल के दौरान जोड़े गए, जब संसद निष्क्रिय थी और न्यायपालिका कमजोर।

क्या अब वक्त है प्रस्तावना की पुनर्समीक्षा का?

आरएसएस प्रमुख के इस बयान से यह साफ़ है कि संगठन अब संविधान की मूल भावना पर लौटने की वकालत कर रहा है।
इस पर राजनैतिक गलियारों में दो तरह की सोच सामने आ रही है, एक पक्ष कहता है कि यह संविधान के मूल दर्शन को फिर से स्थापित करने की कोशिश है। दूसरा पक्ष इसे धर्मनिरपेक्षता पर हमला और राजनीतिक ध्रुवीकरण का हथकंडा मान रहा है।

राजनीति गरम, बहस तेज़ — आगे क्या?

दत्तात्रेय होसबाले और प्रवीण खंडेलवाल के बयानों से यह स्पष्ट है कि आगामी समय में संविधान की प्रस्तावना को लेकर बड़ा वैचारिक विमर्श शुरू हो सकता है। ये बहस सिर्फ कानूनी नहीं, आस्थाओं, विचारधाराओं और भारत की पहचान से जुड़ी हो गई है।

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