कैप्टन सुमित सभरवाल – रिटायरमेंट से पहले आखिरी उड़ान… और आखिरी सांस

Ajay Gupta
Ajay Gupta

एयर इंडिया AI-171 के क्रैश में जान गंवाने वाले कैप्टन सुमित सभरवाल कोई आम पायलट नहीं थे। उनके पास उड़ान का तीन दशकों का अनुभव था और उन्होंने 8,200 घंटे से ज्यादा उड़ान भरी थी। वह सिर्फ पायलट नहीं, बल्कि लाइन ट्रेनिंग कैप्टन भी थे — एक ऐसा सम्मानजनक पद जो केवल सबसे अनुभवी और अनुशासित पायलटों को मिलता है।

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रिटायरमेंट के कुछ महीने पहले, प्लान था परिवार संग वक्त बिताने का

60 वर्षीय कैप्टन सभरवाल कुछ ही महीनों में रिटायर होने वाले थे। रिटायरमेंट के बाद उनका सपना था कि वे अपने 82 वर्षीय पिता, जो कभी नागरिक विमानन प्राधिकरण में अधिकारी रह चुके हैं, के साथ अधिक समय बिताएं। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था — विमान ने उड़ान भरी जरूर, पर मंज़िल कभी नहीं आई।

पड़ोसी बोले – “वर्दी में जो इंसान दिखता था, वो अनुशासन की मिसाल था”

मुंबई स्थित उनके पड़ोसी ने बताया, “वह बेहद संकोची और अनुशासित व्यक्ति थे। अक्सर उन्हें हम वर्दी में आते-जाते देखते थे। उनका चेहरा कुछ कहता नहीं था, लेकिन उनमें एक गरिमा थी।” ऐसी व्यक्तित्व की छवि जब अचानक टूटती है, तो पूरा मोहल्ला भी शोक में डूब जाता है।

नए पंखों वाला को-पायलट भी गया साथ

कैप्टन सभरवाल के साथ इस फ्लाइट में प्रथम अधिकारी (First Officer) क्लाइव कुंदर भी थे। उन्होंने करीब 1,100 घंटे की उड़ान पूरी की थी और उन्हें ड्रीमलाइनर उड़ाने का सर्टिफिकेट भी मिल चुका था। वो इस उद्योग में नया चेहरा थे, और सीखने की राह पर थे — लेकिन ये उड़ान उनकी आखिरी साबित हुई।

एक पायलट नहीं गया, एक युग चला गया

कैप्टन सभरवाल की मौत सिर्फ एक एयरक्राफ्ट लॉस नहीं, बल्कि एक पूरा अनुभव, एक पूरी जीवनशैली का अंत है। जब कोई ऐसा इंसान जाता है, जिसने हज़ारों लोगों को सुरक्षित उड़ान दी, तो सवाल उठता है — क्या ये हादसा रोका जा सकता था?

उनकी रिटायरमेंट पार्टी की जगह अब श्रद्धांजलि सभा हो रही है। जिंदगी की उड़ान कभी सुरक्षित नहीं होती — और कुछ उड़ाने कभी वापस नहीं आतीं।

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