
अहमदाबाद में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार गांधी परिवार के खिलाफ झूठे आरोपों का प्रचार कर रही है, जबकि अदालत पहले ही प्रवर्तन निदेशालय (ED) की शिकायत को खारिज कर चुकी है।
शुक्ला ने कहा कि जिस मामले में 11 साल बीत चुके हों और FIR तक दर्ज न हो पाई हो, वह अपने आप में बताता है कि पूरा मामला राजनीतिक रूप से प्रेरित और फर्जी है।
‘50 घंटे पूछताछ, लेकिन कुछ नहीं मिला’
राजीव शुक्ला ने कहा कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी से करीब 50 घंटे तक पूछताछ की गई। लेकिन जांच एजेंसियों को कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला।
उनके मुताबिक, अदालत के आदेश ने साफ कर दिया है कि कोई घोटाला नहीं हुआ। सरकार का नैरेटिव कानूनी कसौटी पर फेल हो गया
MGNREGA पर भी सरकार को घेरा
संसद के शीतकालीन सत्र के संदर्भ में शुक्ला ने मनरेगा (MGNREGA) योजना में किए गए बदलावों को लेकर भी केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा किया।
उन्होंने आरोप लगाया कि मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाना गांधीजी के प्रति सरकार की दुश्मनी को दर्शाता है।
शुक्ला के अनुसार, नए प्रावधानों से गरीबों को पूरा लाभ नहीं मिल रहा। राज्यों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया।
उन्होंने इन बदलावों को ग्रामीण गरीबों के खिलाफ बताते हुए कानून वापस लेने की मांग की।
महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार पर वार
राजीव शुक्ला ने कहा कि देश इस समय- महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से जूझ रहा है, लेकिन सरकार सिर्फ कांग्रेस की योजनाओं के नाम बदलने में व्यस्त है।
उनका तंज था— काम नया नहीं, नाम नया… और प्रचार सबसे बड़ा।

‘धर्म और नाम बदलने की राजनीति’
शुक्ला ने आगे आरोप लगाया कि जो लोग पहले न्यूक्लियर डील का विरोध करते थे। वही आज उसे अपनी उपलब्धि बता रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार धर्म के नाम पर राजनीति करती है। चुनाव के बाद जनता के हितों को भूल जाती है।
गांधी और अटल का नाम, लेकिन सम्मान नहीं?
राजीव शुक्ला ने कहा कि यह सरकार न महात्मा गांधी का सम्मान करती है। न ही अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं की विरासत को आगे बढ़ाती है।
उन्होंने आरोप लगाया कि जो लोग नेहरू-गांधी परिवार को गालियां देते हैं, वही आज अटलजी का नाम तक नहीं लेते।
आंदोलन की चेतावनी
राजीव शुक्ला ने चेतावनी दी कि महात्मा गांधी के अपमान के खिलाफ कांग्रेस कार्यकर्ता जल्द सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे।
राजनीतिक संकेत साफ है— यह मुद्दा अब सिर्फ बयानबाजी नहीं, street politics तक जाएगा।
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