
कैश-फॉर-क्वेरी मामले में तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा को दिल्ली हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने लोकपाल के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें CBI को महुआ मोइत्रा के खिलाफ चार्जशीट दायर करने की अनुमति दी गई थी।
अदालत ने साफ कर दिया कि इस स्तर पर judicial scrutiny जरूरी है और लोकपाल को मामले पर दोबारा, विधिवत और गहराई से विचार करना होगा।
Two-Judge Bench का सख्त संदेश
यह आदेश जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की दो-जजों की बेंच ने दिया।
कोर्ट ने कहा कि लोकपाल ने पर्याप्त सुनवाई नहीं की। महुआ मोइत्रा की दलीलों पर ठोस विचार नहीं हुआ। ऐसे में CBI को चार्जशीट की अनुमति देना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
accountability की चौकीदारी करने वाला सिस्टम, खुद due process भूल बैठा।
Lokpal को एक महीने में नया फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने लोकपाल को निर्देश दिया है कि वह महुआ मोइत्रा की दलीलों पर properly विचार करे। कानून के प्रावधानों के अनुरूप reasoning दे। एक महीने के भीतर नया फैसला सुनाए। हालांकि कोर्ट ने CBI की जांच पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई, लेकिन लोकपाल का आदेश फिलहाल freeze कर दिया गया है।
Mahua की ओर से क्या दलील दी गई?
महुआ मोइत्रा की तरफ से सीनियर एडवोकेट निधेश गुप्ता ने पक्ष रखा। उन्होंने कोर्ट को बताया कि लोकपाल का आदेश Lokpal Act के खिलाफ है। यह फैसला natural justice का उल्लंघन करता है। बिना defense सुने charge approval देना कानूनन गलत है। High Court ने इन दलीलों को prima facie गंभीर माना।
National Herald से जुड़ा Political Context
यह फैसला ऐसे वक्त आया है, जब हाल ही में नेशनल हेराल्ड केस में भी विशेष अदालत ने ED की चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया था।

उस फैसले के बाद कांग्रेस ने सरकार पर political vendetta का आरोप लगाया था और देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे।
अब महुआ मोइत्रा केस में राहत को विपक्ष एक और moral & political win के तौर पर पेश कर रहा है।
Opposition vs Government: Narrative War तेज
TMC और विपक्षी दलों का कहना है कि जांच एजेंसियों का इस्तेमाल political pressure tool की तरह हो रहा है। अदालतों के फैसले सरकार के narrative को झटका दे रहे हैं। राजनीति में अब बहस संसद में कम और courtroom verdicts से ज्यादा तय हो रही है।
आगे क्या?
अब सबकी नजरें टिकी हैं- लोकपाल के नए फैसले पर, CBI की आगे की strategy पर और इस केस के राजनीतिक असर पर।
एक बात साफ है— यह मामला अब सिर्फ कानूनी नहीं, पूरी तरह political battlefield बन चुका है।
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