“खरमास में चुप्पी, मकर में फैसला? नीतीश के बाद कौन—यही सवाल”

Ajay Gupta
Ajay Gupta

बिहार में एनडीए को निर्णायक जनादेश मिले एक महीना बीत चुका है, लेकिन राजनीति अब भी सेटल मोड में नहीं आई है। सरकार बनी, कुर्सियां तय हुईं, मगर राजनीतिक गलियारों में सवाल वही पुराना है—नीतीश के बाद कौन?

इत्तेफाक देखिए कि यह सब उस समय हो रहा है, जब हिंदू पंचांग के मुताबिक ‘खरमास’ चल रहा है— यानि शुभ कामों पर ब्रेक, लेकिन राजनीतिक चर्चाओं पर कोई रोक नहीं।

दिल्ली मीटिंग से बढ़ी बेचैनी

हाल ही में दिल्ली में जेडीयू के दो वरिष्ठ नेताओं की बंद कमरे में हुई बैठक ने सियासी पारा चढ़ा दिया। सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में खुलकर चर्चा हुई— नीतीश कुमार की उम्र, स्वास्थ्य और सबसे अहम—राजनीतिक उत्तराधिकारी। यहीं से अटकलों को पंख लग गए कि खरमास खत्म होते ही बिहार की राजनीति करवट ले सकती है।

जेडीयू की चिंता: EBC वोट बैंक कहीं खिसक न जाए

जेडीयू की सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ी चिंता— अति पिछड़ा वर्ग (EBC), बिहार की आबादी में हिस्सेदारी: 36.01% दशकों से नीतीश कुमार का सबसे भरोसेमंद वोट बैंक।

पार्टी नेतृत्व चाहता है कि नीतीश के रहते ही उत्तराधिकार का सवाल सुलझ जाए, ताकि EBC वोट बैंक में कोई भ्रम न रहे।

“फैसला निशांत जी को लेना है” — जेडीयू का सधा बयान

जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने इस मुद्दे पर सधा हुआ बयान दिया। उन्होंने साफ कहा— “इस पर अभी कुछ भी आधिकारिक नहीं है, लेकिन पार्टी का रुख स्पष्ट है—निशांत जी को ही फैसला लेना है। जब भी वे हां कहेंगे, हम सभी को खुशी होगी।”

राजनीतिक भाषा में इसे पढ़ें तो—पार्टी तैयार है, बस ‘हां’ का इंतजार है।

युवा, शिक्षित और साफ छवि: निशांत फैक्टर

राजीव रंजन प्रसाद के मुताबिक, बिहार को एक शिक्षित और युवा नेतृत्व की जरूरत है। क्षेत्रीय दलों में उत्तराधिकारी अक्सर परिवार से ही आते हैं। RJD, LJP, HAM—सब इसके उदाहरण हैं। ऐसे में निशांत कुमार को नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत का natural extension माना जा रहा है।

जब सियासत वंश से चलती हो, तो परंपरा क्यों तोड़ी जाए?

बढ़ती सक्रियता और सियासी संकेत

पिछले कुछ महीनों में निशांत की गतिविधियों ने चर्चाओं को और तेज कर दिया है— पटना एयरपोर्ट पर संजय कुमार झा के साथ दिखना। पार्टी कार्यक्रमों में मौजूदगी। पटना में लगे पोस्टर-बैनर।

जेडीयू सूत्रों का दावा है कि पार्टी का कोर वोटर भी निशांत को “safe और acceptable face” मानने लगा है। उनकी सादगी, लो-प्रोफाइल स्टाइल और विवादों से दूरी पार्टी के लिए एक बड़ा प्लस मानी जा रही है।

चुप्पी भी एक रणनीति?

हालांकि तमाम अपीलों और संकेतों के बावजूद निशांत कुमार पूरी तरह खामोश हैं। लेकिन राजनीति में चुप्पी भी कई बार सबसे बड़ा बयान होती है।

विधानसभा चुनाव के दौरान पिता के लिए वोट अपील करना पहला साफ राजनीतिक संकेत माना गया था।

खरमास के बाद क्या होगा बड़ा एलान?

अब सबकी निगाहें टिकी हैं— 14 जनवरी के बाद पर।

राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि खरमास खत्म होते ही जेडीयू उत्तराधिकार पर कोई निर्णायक कदम उठा सकती है। बिहार की राजनीति में अगला अध्याय लिखने की भूमिका तैयार है, बस पन्ना पलटना बाकी है।

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