
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक कार्यक्रम में सिंध और सिंधी समुदाय का मुद्दा उठाया… और फिर क्या, बयान सीधा कराची-इस्लामाबाद तक गूंज गया।
राजनाथ सिंह ने कहा कि “बॉर्डर कभी भी बदल सकते हैं… कौन जानता है, कल सिंध भी वापस भारत में आ जाए।”
बस इतना सुनना था कि पाकिस्तान में एलर्ट मोड + घबराहट मोड + ड्रामा मोड—सब ऑन हो गए।
क्या बोले थे राजनाथ सिंह? “सीमाएं बदलती हैं… सिंध हमारा सभ्यतागत हिस्सा है”
सिंधी समाज के एक कार्यक्रम में राजनाथ सिंह ने कहा- सिंध भले भूगोल में भारत का हिस्सा न हो। लेकिन सभ्यता और इतिहास में सिंध हमेशा भारत का अंग रहा है। सिंधी समुदाय का भारत की संस्कृति में बड़ा योगदान है। लाइट hint देते हुए बोले: “कौन जानता है, सिंध वापस आ जाए।”
यानी संदेश साफ था—“इतिहास बड़ा है… नक्शा बाद में बनता है।”
राजनाथ बोले—“सिंध सिर्फ जमीन नहीं, पहचान है”
उन्होंने बताया कि सिंध और सिंधी शब्द भारत की सांस्कृतिक पहचान से जुड़े हैं। हमारे राष्ट्रगान में भी लोग गर्व से गाते हैं “पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा…”
राजनाथ सिंह ने कहा कि सिंधी समाज की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उनका जुड़ाव देखकर कोई भी समझ सकता है कि सिंध सिर्फ इतिहास नहीं, एक भावना है।
पाकिस्तान का रियेक्शन—“हिन्दुत्व विस्तारवादी सोच!”
राजनाथ सिंह के बयान के कुछ ही घंटों बाद पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय अपनी पुरानी बयानबाज़ी की नोटबुक खोल बैठा।

उनका कहना है ये बयान संप्रभुता का उल्लंघन है। इससे क्षेत्रीय शांति खतरे में पड़ सकती है। भारत के नेताओं को “भड़काऊ बयान” देने से बचना चाहिए और फिर वही घिसा-पिटा फ्लॉप कार्ड “हिंदुत्व विस्तारवादी सोच…”
पाकिस्तान का डर साफ था— “सीमा बदलने की बात सुनकर इस्लामाबाद के सुरक्षा अलार्म अपने-आप बज उठे।”
भारत शांत, पाकिस्तान परेशान
भारत ने बस सांस्कृतिक जुड़ाव की बात की— लेकिन पाकिस्तान को इसमें भी “हिंदुत्व” दिख गया। जैसे किसी ने मौसम का हाल पूछा हो और दूसरे ने समझ लिया— “ये मेरा घर छीनने आए हैं!”
वहीं भारत में लोग बोले “भैया, इतना परेशान क्यों? राजनाथ ने कहा ‘हो सकता है’, ‘आज ही हो जाएगा’ नहीं कहा!”
शब्दों का वजन समझ रहा है पाकिस्तान
राजनाथ सिंह के बयान से एक बात साफ है कि भारत सीमाओं से परे सभ्यतागत पहचान की बात करता है। पाकिस्तान हर बात में सुरक्षा खतरा ढूंढने लगता है और सिंध जैसा विषय पाकिस्तान के लिए भावनात्मक + राजनीतिक रूप से संवेदनशील है। इसलिए उनकी प्रतिक्रिया तेज होना तय था।
“परिवारवाद पर प्रवचन… और मंत्रिमंडल में रिश्तेदारों की लाइन!”
