
रोहिणी कोई आम नाम नहीं, अब यह एक संघर्ष का ब्रांड है। तमिलनाडु के एक आदिवासी गांव की यह बेटी NIT Trichy तक पहुंची, वो भी बिना किसी “quota crying” के नहीं, बल्कि शुद्ध मेहनत और मजदूरी से।
माँ-पिता खेतों में, बेटी ख्वाबों में
जब बच्चे नेटफ्लिक्स और नूडल्स में लगे थे, तब रोहिणी के माता-पिता दिन-भर खेतों में किसी और के सपने उगा रहे थे, और रोहिणी अपने सपनों को पानी दे रही थी—मजदूरी करके, पढ़ाई करके।
एक वक्त था जब किताबों से ज्यादा उसके हाथ में कुदाल और फावड़ा होता था। पर क्या कहते हैं? “जिसमें आग हो, वो कोयला भी हीरा बन जाता है।”
JEE Mains की तैयारी के साथ खुद की कमाई
India का toughest exam – JEE Mains! और रोहिणी ने उसे फर्स्ट अटेम्प्ट में 73.8% स्कोर के साथ क्लियर कर लिया। पढ़ाई के लिए ना कोचिंग, ना लैपटॉप – बस लालटेन और लगन।
जहाँ अमीर बच्चे ‘online doubt sessions’ के लिए पैसे देते हैं, वहाँ रोहिणी सवालों को मजदूरी के पसीने में भिगोकर हल करती थी।
NIT Trichy में एडमिशन – गरीबी का करारा जवाब
आज रोहिणी NIT Trichy में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की छात्रा है – वो भी अपने राज्य की पहली आदिवासी लड़की के रूप में। ये कोई न्यूटन का लॉ नहीं, न्याय का लॉ है – मेहनत का फल आखिर मीठा निकला।

Govt School से उड़ान का सपना
उसने सरकारी आदिवासी स्कूल से पढ़ाई की। स्कूल स्टाफ और हेडमास्टर ही उसके “कोचिंग इंस्टिट्यूट” थे। उसने कभी Harvard का वीडियो नहीं देखा, पर हर वक्त हार्ड वर्क जरूर किया।
रोहिणी सिर्फ नाम नहीं, उम्मीद है
जहाँ कुछ लोग “पलायनवाद” की राजनीति करते हैं, वहीं रोहिणी जैसे युवा “प्रेरणावाद” की मिसाल हैं। वो बताती है कि संसाधन सीमित हो सकते हैं, लेकिन सपनों की ऊंचाई पर कोई टैक्स नहीं है।
किताबों से मजबूत हथियार कोई नहीं
रोहिणी की कहानी उन सब युवाओं को गूंजते हुए कहती है – “टॉपर बनने के लिए टैबलेट नहीं, तबीयत चाहिए।”
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