10,000 लोगों का खाना, रातभर चलती रसोई: लखनऊ का शाही किचन

महेंद्र सिंह
महेंद्र सिंह

जैसे ही मोहर्रम का चांद दिखता है, लखनऊ का छोटा इमामबाड़ा एक बार फिर अपनी मोहब्बत भरी परंपरा के लिए चर्चा में आ जाता है। यहां 1 से 9 मोहर्रम तक सजता है ‘शाही किचन’, जहां से रोज़ाना 10,000 से ज़्यादा ज़रूरतमंदों के लिए खाना बनाकर बांटा जाता है।

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65 लाख में मिला इस साल का ठेका

इस रसोई का संचालन हुसैनाबाद ट्रस्ट की निगरानी में होता है और इस साल इसका ठेका 65 लाख रुपये में दिया गया है। किचन इंचार्ज मुर्तजा बताते हैं कि यह परंपरा 1832 से जुड़ी है, जब नवाब मोहम्मद अली शाह ने छोटा इमामबाड़ा बनवाया था।

24 बावर्ची, रातभर की मेहनत, दिन में बंटता तबर्रुक

इस रसोई में कुल 24 बावर्ची दिन-रात काम करते हैं। हर दिन करीब 10 कुंतल आटे की रोटियां और 7 कुंतल आलू की सब्जी या चने की दाल तैयार होती है।
सुबह 9 से 11 बजे के बीच लखनऊ के विभिन्न इलाकों में यह खाना जरूरतमंदों को बांटा जाता है

पहले तीन दिन चने की दाल, फिर आती है आलू की सब्जी

पहले तीन दिन दो रोटी और चने की दाल परोसी जाती है। बाद के दिनों में तंदूरी रोटी और आलू की सब्जी दी जाती है, ताकि स्वाद और पोषण का संतुलन बना रहे।

नवाबों के घरों तक पहुंचता है ‘शाही तबर्रुक’

नवाबी दौर में इस किचन की निगरानी खुद नवाब किया करते थे। आज भी शाही घरानों में लाल कपड़े में बांधकर बड़ी हांडी भेजी जाती है, जिसे बड़े अदब से ग्रहण किया जाता है। 7वीं मोहर्रम को ये मेवे और फल गरीबों में बांटे जाते हैं।

सिर्फ शाकाहारी भोजन, सब धर्मों के लिए खुला

इस शाही रसोई में नॉनवेज कभी नहीं पकाया जाता। यह रसोई सबके लिए है — मजहब से ऊपर उठकर इंसानियत की सेवा करने वाला एक केंद्र। यह है लखनऊ की असली गंगा-जमुनी तहज़ीब।

इबादत समझकर काम करते हैं बावर्ची

बावर्ची नईम कहते हैं, “यह धर्म का काम है। पैसा चाहे कम हो, पर सुकून बहुत है।” रातभर खाना बनता है, पैकिंग भी रात को ही होती है। दिन में सभी आराम करते हैं। काम को इस तरह बांटा गया है कि गुणवत्ता में कभी समझौता न हो।

सिर्फ मोहर्रम नहीं, रमज़ान में भी होता है आयोजन

यह शाही किचन केवल मोहर्रम तक सीमित नहीं है। रमज़ान के पूरे महीने भी यहां से तबर्रुक बनाकर गरीबों और रोज़ेदारों में बांटा जाता है।

लखनऊ का यह शाही किचन सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि एक जिंदा तहजीब, इंसानियत का प्रतीक और नवाबी इतिहास का गौरव है। ऐसी विरासतें आज भी हमें जोड़ती हैं और बताती हैं कि दिल से की गई सेवा किसी भी धर्म से ऊपर होती है।

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