ठाकरे मिलन या सत्ता वियोग?” — फडणवीस बोले: ये रैली नहीं, रुदाली थी

भोजराज नावानी
भोजराज नावानी

मुंबई की सड़कों पर जैसे ही “विजय रैली” की आवाज गूंजी, लोगों ने सोचा शायद ये मराठी अस्मिता का उत्सव होगा। लेकिन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने तुरंत ही रैली को एक नया नाम दे दिया — “रुदाली सभा”

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फडणवीस का सटायरिक हमला

फडणवीस ने कहा, “मैं राज ठाकरे को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने दोनों भाइयों को एक कर दिया — जो काम बालासाहेब ठाकरे नहीं कर सके, वो कर दिखाया!” मगर साथ ही तंज कसते हुए जोड़ दिया कि ये मंच मराठी गर्व का नहीं, सत्ता वियोग की सिसकी थी। भाषणों में मराठी भाषा तक का नाम नहीं था। ये सिर्फ कुर्सी के छिनने का दुख था, उत्सव नहीं!

ठाकरे मिलन: मजबूरी या मिशन?

राज और उद्धव करीब 20 साल बाद एक ही मंच पर नजर आए, और दोनों ने बीजेपी पर निशाना साधा। राज बोले – “जो काम बालासाहेब नहीं कर सके, वो फडणवीस ने कर दिखाया।” लेकिन राजनीतिक जानकार इसे “मजबूरी का मेल” कह रहे हैं।

शिंदे गुट की मनीषा कायंदे बोलीं – “एक समय जो राज को घर से निकाले थे, अब उन्हीं के सहारे मंच शेयर कर रहे हैं!”

भाषाई ‘बवाल’ और सरकारी ‘U-Turn’

सरकार ने हाल ही में पहली से पांचवी कक्षा में हिंदी, मराठी और अंग्रेज़ी अनिवार्य की थी। इस पर ठाकरे बंधुओं ने आंदोलन की चेतावनी दी।
राज ठाकरे ने सवाल उठाया – “अगर हिंदी ज़रूरी है, तो फिर बिहार और यूपी में मराठी क्यों नहीं?”

सरकार ने बाद में आदेश वापस ले लिया, जिस पर रामदास अठावले ने कहा, “डर से नहीं, मराठी जनता की भावना देखकर फैसला बदला गया।”

BMC चुनाव: हिंदुत्व बनाम मराठी अस्मिता?

जैसे-जैसे BMC चुनाव नजदीक आ रहे हैं, मराठी बनाम हिंदुत्व की बहस फिर ज़ोर पकड़ रही है।
फडणवीस बोले:

“हम मराठी भी हैं और हिंदू भी। हमारा हिंदुत्व किसी को छोड़ता नहीं, साथ लेकर चलता है।”

राजनीति में ‘कुर्सी’ ही असली संस्कृति?

रैली में न तो ढोल-ताशे थे, न लेझीम की ताल। सिर्फ सत्ता से बेदखली का ‘सांस्कृतिक विलाप’ था। क्या वाकई यह मराठी स्वाभिमान का संगम था या राजनीति की चालबाज़ी?

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