
तमिलनाडु में 6 लाख नए वोटरों की एंट्री क्या हुई, कांग्रेस के सीनियर नेता पी. चिदंबरम का खून खौल उठा। मामला सिर्फ वोट जोड़ने का नहीं है, बल्कि “वोट कहां डालना है” और “छठ कहां मनाना है”—उसका दिल से गहरा नाता है।
“जब छठ मनाने बिहार जाते हैं तो वोट भी वहीं डालिए जनाब,”
चिदंबरम बोले, “तमिलनाडु के वोटों में बिहारी बैलट की एंट्री ठीक वैसी ही है जैसे रसगुल्ले में समोसा रख देना।”
“वोट वहीं बनाओ, जहां छतरी खुलती है” – चिदंबरम का तर्क
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने साफ-साफ कहा कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए व्यक्ति का “स्थायी और कानूनी” पता ज़रूरी है।
अब अगर प्रवासी मजदूर तमिलनाडु में काम कर रहे हैं लेकिन स्थायी रूप से रहते नहीं, तो फिर “यहां वोट कैसे बन गया?”
“अगर ठेके पे रह रहे हो, तो ठसक से वोट क्यों डाल रहे हो?”
छठ पूजा का उदाहरण देकर चलाई तर्क की ट्रेन
चिदंबरम ने तंज कसते हुए कहा —
“जैसे छठ पर सभी प्रवासी अपने गांव-देहात लौटते हैं, वैसे ही उन्हें विधानसभा चुनाव के लिए भी वहीं जाना चाहिए।”
“वर्ना ये तो दो-दो सरकारों में मर्ज़ी से घुसने वाली वोटिंग हो जाएगी।”
मतलब:
छठ = परंपरा
वोट = पवित्रता
और
छठ के बहाने वोट का इंपोर्ट-एक्सपोर्ट बंद किया जाए।
“तमिलनाडु के वोट में बिहार का पराठा?” – लोकतंत्र का टेस्ट बिगड़ जाएगा
चिदंबरम ने इसे तमिलनाडु के मतदाता अधिकारों में हस्तक्षेप बताया और चेतावनी दी कि इससे राज्य के लोगों की लोकतांत्रिक स्वतंत्रता में खलल पैदा हो सकता है।
“राजनीति में सब चलता है, लेकिन वोटर डेटा में RTO वाली सुविधा नहीं होनी चाहिए कि ‘कहीं भी रजिस्ट्रेशन कराओ, चलाओ वहीं’।”
बिहार में 65 लाख वोट खतरे में, उधर तमिलनाडु में बंपर एंट्री – क्या चल रहा है EC?
कांग्रेस नेता ने इस असंतुलन पर सीधा हमला बोला। एक तरफ बिहार में 65 लाख वोटर डिलीट हो रहे हैं, दूसरी तरफ तमिलनाडु में 6 लाख नए वोट जुड़ रहे हैं।
“ये तो वैसा हो गया जैसे एक क्लास में बच्चे का नाम काट कर, दूसरे स्कूल में बगैर एडमिशन टेस्ट पास किए एडमिट कर दिया गया।”
EC पर लगाया ‘शक्ति दुरुपयोग’ का आरोप
Election Commission पर भी चिदंबरम ने जमकर प्रहार किया। बोले:
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“चुनाव आयोग राज्यों के चुनावी पैटर्न के साथ खिलवाड़ कर रहा है।“
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“यह सिर्फ प्रशासनिक नहीं, राजनीतिक मुद्दा बन चुका है।”
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और हां, “इसका विरोध सिर्फ राजनीतिक नहीं, कानूनी भी होगा।“
समझिए पूरा माजरा
EC: “नए वोटर जोड़ने हैं।”
चिदंबरम: “लेकिन वो तो छठ पर गांव जाते हैं!”
EC: “छठ तो पर्सनल है।”
चिदंबरम: “वोट पब्लिक होता है। पब्लिक पर्सनल में घुस गया तो क्या बचेगा?”
प्रवासी मजदूरों की पहचान, वोटर राइट्स और चुनावी संतुलन – यह तीनों चीजें अब एक राजनीतिक त्रिकोण बन चुकी हैं।
चिदंबरम की दलील भले ही तीखी हो, पर मुद्दा एकदम गंभीर है — क्या मतदाता सूची अब स्थान आधारित रहेगी या पेशा आधारित?
और क्या छठ पूजा का रूट अब वोटिंग पोलिंग बूथ तक जाएगा?
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