जब हम किसी व्यक्ति या घटना को अपने धार्मिक चश्मे से देखते हैं, तो अक्सर हम उनकी वास्तविकता को समझने में चूक जाते हैं। यही कारण है कि हम इमाम हुसैन को केवल एक धार्मिक नेता के रूप में ही नहीं, बल्कि एक इंसानियत के प्रहरी के रूप में समझने की कोशिश करें। हुसैन का संघर्ष और उनका संदेश आज भी हमारे दिलों में गूंजता है, जो हमें धर्म, समानता और मानवता की सच्ची समझ देता है। हुसैन का संदेश – मानवता और समानता इमाम हुसैन का जीवन इस्लाम के…
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प्यास पे करबला रोया: अली असग़र अ.स. पर एक नौहा जो रूह तक हिला दे
कर्बला की दास्तान में अगर कोई लम्हा सबसे ज्यादा रूह को झकझोरता है, तो वो है अली असग़र अ.स. की शहादत। महज़ छह महीने की उम्र, दूध के लिए तड़पता बच्चा, और पिता इमाम हुसैन अ.स. की गोद में तीर की ज़ुबान से मिला जवाब — यह नज़ारा न केवल इतिहास बल्कि इंसानियत के सीने पर एक ऐसा ज़ख्म है, जो कभी नहीं भरता। ये नौहा सिर्फ़ एक मातमी नज़्म नहीं, बल्कि उस मासूम चीख़ का साज है जिसे न कोई ज़ुबां मिली, न ज़मीर ने जवाब दिया। ये तरन्नुम…
Read Moreलखनऊ शाही मेहंदी जुलूस: मोहर्रम पर तहज़ीब, मातम व एकता का प्रतीक
जब मोहर्रम दस्तक देता है, तो लखनऊ की रंगीन गलियाँ एकदम बदल जाती हैं। चाहे वह मातम हो, मेहंदी की जलीलियत हो या साबित तहज़ीब — यह शहर गंगा-जमुनी एकता का जुमला बन जाता है। जब ‘जय भीम’ सिर्फ़ नारा नहीं, इंकलाब बन गया अज़ादारी की तहज़ीबी जड़ें 18वीं सदी में नवाब असफ़‑उद‑दौला ने लखनऊ को शिया संस्कृति का केंद्र बनाया। “मजलिस”, “नौहे”, “अलम”, “ताज़िया” — यह परंपराएँ यहाँ की रग‑रग में घुल चुकी हैं।अब अज़ादारी 29 जिल‑हिज्जा के बाद रबी‑उल‑अव्वल तक फहराती रहती है, एक दायरे में दोनों तरफ़…
Read Moreना शिया, ना सुन्नी, हिंदू या मुसलमान—हुसैन के दीवाने बस इंसान होते हैं
जब-जब दुनिया ने ज़ुल्म और अन्याय का क़हर देखा है, तब-तब करबला की सरज़मीं से उठी एक आवाज़ ने इंसानियत को राह दिखाई है। इमाम हुसैन का नाम सिर्फ किसी एक मज़हब या समुदाय की इबादत नहीं, बल्कि इंसाफ़, सच्चाई और हिम्मत की मिसाल है। वो जंग सिर्फ तलवारों की नहीं थी — वो जंग थी ज़मीर के ज़िंदा रहने की। आज जब मज़हबी पहचानें दीवारें खड़ी कर रही हैं, तब इमाम हुसैन की कुर्बानी हमें याद दिलाती है कि अल्लाह या भगवान से पहले, इंसान होना ज़रूरी है। हुसैन…
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