जैसे ही मोहर्रम का चांद दिखता है, लखनऊ का छोटा इमामबाड़ा एक बार फिर अपनी मोहब्बत भरी परंपरा के लिए चर्चा में आ जाता है। यहां 1 से 9 मोहर्रम तक सजता है ‘शाही किचन’, जहां से रोज़ाना 10,000 से ज़्यादा ज़रूरतमंदों के लिए खाना बनाकर बांटा जाता है। ग़ज़ा संघर्ष विराम पर क़तर में हमास-इसराइल वार्ता, संशोधन पर टकराव 65 लाख में मिला इस साल का ठेका इस रसोई का संचालन हुसैनाबाद ट्रस्ट की निगरानी में होता है और इस साल इसका ठेका 65 लाख रुपये में दिया गया…
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लखनऊ शाही मेहंदी जुलूस: मोहर्रम पर तहज़ीब, मातम व एकता का प्रतीक
जब मोहर्रम दस्तक देता है, तो लखनऊ की रंगीन गलियाँ एकदम बदल जाती हैं। चाहे वह मातम हो, मेहंदी की जलीलियत हो या साबित तहज़ीब — यह शहर गंगा-जमुनी एकता का जुमला बन जाता है। जब ‘जय भीम’ सिर्फ़ नारा नहीं, इंकलाब बन गया अज़ादारी की तहज़ीबी जड़ें 18वीं सदी में नवाब असफ़‑उद‑दौला ने लखनऊ को शिया संस्कृति का केंद्र बनाया। “मजलिस”, “नौहे”, “अलम”, “ताज़िया” — यह परंपराएँ यहाँ की रग‑रग में घुल चुकी हैं।अब अज़ादारी 29 जिल‑हिज्जा के बाद रबी‑उल‑अव्वल तक फहराती रहती है, एक दायरे में दोनों तरफ़…
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