जैसे ही मोहर्रम का चांद दिखता है, लखनऊ का छोटा इमामबाड़ा एक बार फिर अपनी मोहब्बत भरी परंपरा के लिए चर्चा में आ जाता है। यहां 1 से 9 मोहर्रम तक सजता है ‘शाही किचन’, जहां से रोज़ाना 10,000 से ज़्यादा ज़रूरतमंदों के लिए खाना बनाकर बांटा जाता है। ग़ज़ा संघर्ष विराम पर क़तर में हमास-इसराइल वार्ता, संशोधन पर टकराव 65 लाख में मिला इस साल का ठेका इस रसोई का संचालन हुसैनाबाद ट्रस्ट की निगरानी में होता है और इस साल इसका ठेका 65 लाख रुपये में दिया गया…
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आज चाँद की तस्दीक हो गई, 27 जून को पहली मुहर्रम
इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम चांद के दीदार के साथ शुरू हो गया है। यह महीना मुस्लिम समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दौरान हजरत इमाम हुसैन (अ.स) और उनके 72 साथियों की कर्बला में दी गई शहादत को याद किया जाता है। इस माह के दौरान ताजिए और शोक की परंपरा विशेष रूप से देखने को मिलती है, और साथ ही हिजरी साल 1447 की शुरुआत भी होती है। हुसैन जिए ज़ुल्म के ख़िलाफ़… और अमन के लिए शहीद हुए कर्बला की घटना: बलिदान और संघर्ष…
Read Moreहुसैन जिए ज़ुल्म के ख़िलाफ़… और अमन के लिए शहीद हुए
इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत मोहर्रम से होती है, लेकिन ये कोई जश्न नहीं – एक ऐसा महीना है जो पूरी दुनिया को इंसाफ़, कुर्बानी और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़े होने का पाठ पढ़ाता है। आज से करीब 1400 साल पहले कर्बला की तपती रेत पर वो जंग लड़ी गई थी जिसमें सिर्फ़ हथियार नहीं, आदर्श, उसूल और इंसानियत टकरा रहे थे। पैग़ंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन, जिनका गुनाह सिर्फ इतना था कि उन्होंने अन्याय के सामने सिर झुकाने से इनकार कर दिया – उन्हें और उनके 71 साथियों…
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