भोपाल का कोलार अब मेट्रो स्टाइल सड़कें, ऊंची इमारतें और नीली टीन की दीवारों के पीछे ज़मीन की दौलत पर नया संग्राम देख रहा है। यहाँ एक ज़मीन है जिसे कुछ लोग क़ब्रिस्तान कहते हैं, कुछ गोशाला का भविष्य।और कुछ इसे “सियासत की प्रयोगशाला” मान चुके हैं। कब्रिस्तान था या नहीं? जवाब: “थोड़ा था, थोड़ा नहीं था” मोहम्मद हनीफ़, क़ब्रिस्तान समिति के अध्यक्ष, कहते हैं, “1959 से लेकर 2011 तक यहाँ दफ़न हुआ है, आख़िरी क़ब्र बद्दू दादा की थी।” और फिर आए रिकॉर्ड्स, GPS मैपिंग और ज़िला प्रशासन का…
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