युद्ध नहीं, रणनीति से होगा पाकिस्तान का सफाया — भारत की ‘शांति वाली सर्जिकल स्ट्राइक’

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि)

“बदला लो!” — यह भावनात्मक उबाल कई बार तात्कालिक सुकून देता है, लेकिन दीर्घकाल में देश को भारी कीमत चुकानी पड़ती है। हर आतंकी घटना के बाद सोशल मीडिया पर उठने वाली युद्ध की मांग भावनाओं का विस्फोट तो हो सकती है, पर नीतिगत दिशा नहीं।

आत्मघाती बम पहनकर पाकिस्तान जाने को तैयार कर्नाटक के मंत्री ज़मीर अहमद खान

मेरा कहना है कि:

“उतावले देशभक्तों को समझना चाहिए रणभूमि विकल्प नहीं है। बदला लेने के लिए केंद्र सरकार आर्थिक मोर्चे पर पीछे पड़ गई — पाकिस्तान के लिए ये सबसे असरदार बदला है। इसके साथ ही सरकार जिस तरह विश्व में आतंक के खिलाफ समर्थन जुटा रही है, वो पाकिस्तान के खिलाफ कहीं बेहतर कूटनीति है।”

युद्ध क्यों नहीं?

दोनों देश परमाणु ताकत से लैस हैं

युद्ध का सीधा असर आम जनता, अर्थव्यवस्था और वैश्विक निवेश पर पड़ता है

कश्मीर मुद्दे को इंटरनेशनलाइज़ करने का बहाना पाकिस्तान को मिल जाता है

रणनीति क्यों बेहतर है?

वैश्विक सहमति से पाकिस्तान को अलग-थलग किया जा सकता है

आर्थिक और जल संसाधनों पर नियंत्रण उससे ज्यादा प्रभावी सजा है

आतंकवाद के नेटवर्क को जड़ से खत्म करने की दीर्घकालिक प्रक्रिया

मोदी सरकार की आर्थिक स्ट्राइक

FATF के ज़रिए दबाव

पाकिस्तान 2018 से FATF ग्रे लिस्ट में है — भारत की कूटनीति और प्रमाणिक खुफिया सूचनाओं ने उसे आतंकवाद को लेकर बेनकाब किया। इससे विदेशी निवेश लगभग बंद हो गया।

व्यापारिक संबंध समाप्त करना

भारत ने पाकिस्तान से व्यापार बंद कर उसे करोड़ों डॉलर के घाटे में डाला। सीमेंट, ड्राई फ्रूट, और कपड़ा उद्योग सीधे प्रभावित हुए।

पानी पर रणनीतिक दबाव

सिंधु जल संधि के तहत भारत ने अपने हिस्से के पानी के इस्तेमाल पर काम तेज़ किया — जिससे पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था हिल गई।

OIC जैसी संस्थाओं में प्रभाव

भारत अब मुस्लिम बहुल देशों के मंचों पर आमंत्रित है, जो पहले पाकिस्तान की बपौती मानी जाती थी। ये उसके ‘मुस्लिम कार्ड’ की विफलता है।

“Global Narrative” को नियंत्रित करना

भारत की विदेश नीति अब सिर्फ “पाकिस्तान को जवाब” देने तक सीमित नहीं है। मोदी सरकार ने दुनिया के सामने खुद को आतंकवाद पीड़ित और पाकिस्तान को “आतंक का स्पॉन्सर” स्थापित करने में सफलता पाई है।

इससे क्या हुआ?

पाकिस्तान की सैन्य प्रतिष्ठा वैश्विक मंचों पर संदिग्ध बनी

IMF, World Bank जैसी संस्थाओं से लोन लेना मुश्किल हुआ

चीन जैसे देशों का भी भरोसा घटा

1965, 1971 और 1999 — भारत जीता लेकिन क्या पाकिस्तान सुधरा?

नहीं। हर युद्ध के बाद वह और अधिक कट्टर और सेना-नियंत्रित बन गया। इस बार उसे आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर तोड़ना ज़रूरी है, जो मोदी सरकार की नीति का मूल है।

Digital Strike

पाकिस्तान के झूठे नैरेटिव को भारत की डिजिटल डिप्लोमेसी ने दुनिया के सामने नंगा किया

ट्विटर, UN डिबेट्स, और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत की सच्ची बात ज्यादा गूंजी

भारत ने AI से लैस “डिजिटल मॉनिटरिंग” से आतंकी फंडिंग के ऑनलाइन नेटवर्क ध्वस्त किए

आखिर में मैं यही कहुंगा, रणभूमि में युद्ध जीतना आसान है, लेकिन दिलों और वैश्विक मंचों पर युद्ध जीतना राष्ट्र की परिपक्वता है। बदला तब सफल है जब दुश्मन खुद को पछताए, दुनिया उसका साथ छोड़ दे और उसकी अर्थव्यवस्था दम तोड़ दे — यही भारत ने किया है।

जातिगत जनगणना: विकास का मॉडल या सामाजिक विभाजन का जरिया?

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