
उत्तर प्रदेश की सत्ता गलियों में एक नाम ऐसा है जो सरकार बदलने के साथ कमजोर नहीं, बल्कि और मजबूत होता गया— नवनीत सहगल।
पूर्व नौकरशाह सहगल को लेकर कहा जाता है— सत्ता किसी की हो, सिस्टम में सहगल की पकड़ हमेशा रहती है।”
बसपा दौर: जब सहगल थे सिस्टम के पावर सेंटर
मायावती सरकार के दौरान नवनीत सहगल को यूपी के सबसे ताकतवर अफसरों में गिना जाता था। फाइलें चलती थीं, फैसले होते थे—और नाम जुड़ा रहता था Sehgal Stamp से।
सपा आई, किनारे हुए… लेकिन ज्यादा देर नहीं
जब समाजवादी पार्टी सत्ता में आई तो माना गया कि सहगल युग खत्म। कॉरिडोर में चर्चा थी— “अब सहगल आउट हैं।”
लेकिन राजनीति में जो दिखता है, वही सच नहीं होता। खुद तत्कालीन CM अखिलेश यादव ने सहगल को बड़ी जिम्मेदारी देकर सबको चौंका दिया।
बीजेपी आई, फिर वही कहानी… और फिर ट्विस्ट
2017 में बीजेपी की सरकार बनी। एक बार फिर कहा गया— “अब तो सीधा रिटायरमेंट।”
लेकिन सिस्टम ने फिर पलटी मारी। नवनीत सहगल पहुंचे प्रसार भारती — और दिल्ली के पावर सर्कल में उनकी एंट्री हो गई।
अब चर्चा दिल्ली LG की
अब सहगल फिर चर्चा में हैं, और वजह है दिल्ली का उपराज्यपाल (LG) पद। पॉलिटिकल कॉरिडोर की मानें तो— सहगल सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं। प्रशासनिक अनुभव + राजनीतिक संतुलन। सत्ता और संगठन दोनों में स्वीकार्यता।

यानी—UP से दिल्ली तक, सहगल की चाल सीधी नहीं, स्ट्रेटेजिक है।
वीडियो ने बढ़ाई हलचल
इस चर्चा को और हवा मिली एक वीडियो से, जिसमें नवनीत सहगल बीजेपी संगठन के कद्दावर नेता के साथ नजर आ रहे हैं।
वीडियो के बाद सवाल एक ही— “क्या सहगल फिर से पावर में लौट चुके हैं?”
सटायर में समझिए सिस्टम
हर बार लोग कहते हैं—
सहगल खत्म
सहगल किनारे
सहगल रिटायर
और हर बार सिस्टम जवाब देता है— “Wait & Watch.”
नवनीत सहगल की कहानी बताती है— राजनीति में चेहरे बदलते हैं, लेकिन पावर प्लेयर वही रहते हैं।
आंखों ने दिया Warning Signal! बढ़ा हुआ कॉलेस्ट्रोल चेहरा पढ़कर बता देता है
