
मालेगांव 2006 बम विस्फोट केस में गुरुवार को विशेष एनआईए अदालत ने फैसला सुनाते हुए सातों अभियुक्तों को बरी कर दिया। यह फैसला उस केस का अंत माना जा रहा है जिसमें 6 लोगों की मौत और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। केस करीब 17 साल तक चला और कई मोड़ आए।
मुख्यमंत्री फडणवीस की प्रतिक्रिया: “षड्यंत्र साफ़ है”
फैसले के बाद महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मीडिया से कहा:
“अभी हम इस फैसले को विस्तार से देखेंगे। इसमें क्या कहा गया है, यह समझने के बाद ही कोई निर्णय होगा। फिलहाल जो चीजें सामने आ रही हैं, उसमें स्पष्ट दिखता है कि कोई षड्यंत्र था।”
केस की पृष्ठभूमि: मालेगांव की वो काली शाम
सितंबर 2006, महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में बम धमाके हुए थे। इस हमले में 6 लोगों की जान गई थी और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे।
शुरुआती जांच महाराष्ट्र ATS ने की, जिसे बाद में CBI और फिर NIA को सौंप दिया गया।
अभियुक्तों के नाम और मामला
इस केस में कई नाम सामने आए थे, जिनमें हिंदू कट्टरपंथी संगठनों से जुड़े लोगों के नाम भी थे। वर्षों तक चली जांच, गवाहों के बयान और ट्रायल के बाद, आखिरकार अदालत ने सभी 7 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
कोर्ट ने क्या कहा?
फैसले में कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में असफल रहा और सबूत अपर्याप्त थे। अदालत ने यह भी कहा कि “केस में संदेह ज़रूर है, लेकिन संदेह के आधार पर सज़ा नहीं दी जा सकती।”
सियासी हलचल: विपक्ष क्या कह रहा है?
इस फैसले पर अभी विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया आनी बाकी है, लेकिन राजनीतिक हलकों में यह मुद्दा फिर से चर्चा में है। बहस इस बात पर है कि क्या इतने लंबे समय तक निर्दोष लोग आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद थे?
और क्या जांच एजेंसियों की भूमिका सवालों के घेरे में है?
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