पेट्रोल कारों का दिल टूटा, डीज़ल कारें निकलीं असली माइलेज क्वीन! जानिए क्यों

संदीप भट्ट
संदीप भट्ट

“माइलेज कितनी है?” — ये सवाल भारत में कार खरीदने से पहले पूछा जाने वाला पहला संस्कार है। और जैसे ही कोई बोलता है “डीज़ल गाड़ी है”, सामने वाले की आंखों में एक चमक आ जाती है, जैसे उसने अभी-अभी जीवन का सार पा लिया हो। अब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्या है इस डीज़ल में जो पेट्रोल को शर्मिंदा कर देता है?

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हाई एनर्जी डेंसिटी:

डीज़ल के अंदर इतनी एनर्जी है कि अगर वो इंसान होता तो रोज़ जिम जाकर बिना प्रोटीन शेक के बॉडी बना लेता। डीज़ल की एनर्जी डेंसिटी है 45.3 MJ/kg और पेट्रोल बस 42.4 MJ/kg — यानी डीज़ल हर घूंट में ज़्यादा जान फूंक देता है।

 इंजनों की राजनीति:

डीज़ल इंजन का कंप्रेशन रेश्यो पेट्रोल से कहीं ऊपर—15:1 से 23:1! जैसे इंडिया में चुनावी वादे होते हैं, बड़े और दमदार। पेट्रोल इंजन का रेश्यो 8:1 से 12:1 — यानी बातों में ज़्यादा, दम में कम।

लंबा गियर रेश्यो:

डीज़ल कार का गियर ऐसा चलता है जैसे ऑफिस से निकलकर सीधा गोवा ट्रिप प्लान कर लिया हो—लंबा, आरामदायक और किफायती। वहीं पेट्रोल कार अभी भी रेड लाइट पर फंसी पड़ी है।

कम RPM पर ज्यादा टॉर्क:

डीज़ल इंजन आराम से चलता है, मगर जब टॉर्क की बात आती है, तो ऐसा घूमा देता है जैसे WWE में अंडरटेकर वापसी कर गया हो। कम RPM में भी इतना टॉर्क, पेट्रोल इंजन बस देखता रह जाता है।

चिकनाई में भी फर्स्ट:

डीज़ल न सिर्फ पावर देता है, बल्कि इंजन को थोड़ा चिकना भी कर देता है—ऐसे जैसे दोस्त आपको बिना बोले चाय लाकर दे दे। वहीं पेट्रोल? वो तो इंजन का मॉइस्चर भी खींच लेता है।

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अगर आप उन लोगों में हैं जो कार से 10 बार सोचकर ब्रेक लगाते हैं ताकि माइलेज बच जाए, तो डीज़ल गाड़ी आपके लिए बनी है। और अगर आप सोचते हैं कि “पेट्रोल तो स्टाइल है”, तो भाई स्टाइल महंगा आता है!

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