सीज़फायर पर लखनऊ वालों की राय: क्या ये वाकई शांति की शुरुआत है?

महेंद्र सिंह
महेंद्र सिंह

भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष और फिर सीज़फायर की घोषणा ने देशभर में चर्चा छेड़ दी है। लखनऊ जैसे संवेदनशील और राजनीतिक रूप से जागरूक शहर में इस विषय पर लोगों की राय जानना ज़रूरी हो जाता है।

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“शांति जरूरी है, मगर कीमत पर नहीं” — सरताज़ अहमद (मेडिकल छात्र, चौक)

सरताज़ कहते हैं, “सीज़फायर का समर्थन करता हूं, लेकिन अगर इसका मतलब है कि हम आतंकी हमलों को भूल जाएं, तो यह नाइंसाफी है। पहलगाम में जो हुआ, उसे हम भुला नहीं सकते।”

“कूटनीति बेहतर, लेकिन जवाब भी ज़रूरी” — अनीशा रिज़वी (रिसर्च स्कॉलर)

अनीशा का मानना है कि “डिप्लोमैसी से स्थायी समाधान हो सकता है, लेकिन पाकिस्तान की मंशा पर भरोसा करना अभी मुश्किल है। हम हर बार पीस ऑफर करते हैं, और वो जवाब में गोली चलाते हैं।”

आम आदमी बस चैन चाहता है — शिवेंद्र सिंह (बैंक कर्मचारी)

“कौन नहीं चाहता कि सरहदें शांत हों? मगर जब तक पाकिस्तान अपनी हरकतें नहीं बदलता, ये शांति कागज़ी ही लगेगी,” शिवेंद्र कहते हैं।

“मीडिया का शोर, लेकिन ज़मीन पर डर बना रहता है” — फैयाज़ आलम (व्यवसायी)

फैयाज़ बताते हैं कि “सीज़फायर की खबर चैनलों पर तो खूब चलती है, लेकिन कश्मीरी भाई डर में जीते हैं। अगर भारत पीछे हटा है तो कुछ ठोस योजना जरूर होगी। पाकिस्तान को सीधी भाषा में समझाना ज़रूरी है।”

“71 की तरह निर्णायक हो भारत” — प्रो. रहीम उद्दीन (सेवानिवृत्त प्रोफेसर)

“इंदिरा गांधी ने जो निर्णायकता दिखाई थी, वैसी ही ज़रूरत आज है। पाकिस्तान बार-बार धोखा देता है, अब भारत को कूटनीति से ज्यादा रणनीति दिखानी चाहिए।”

क्या कहता है जनमत?

लखनऊ में युवाओं से लेकर बुज़ुर्गों तक, सीज़फायर को लेकर “सशर्त समर्थन” की भावना देखने को मिली। लोग चाहते हैं कि शांति कायम हो, लेकिन उसकी बुनियाद आतंकवाद से समझौता नहीं, बल्कि उसका अंत हो।

लखनऊ की ज़मीन से उठ रही आवाज़ एक समान है — “शांति तभी तक मंजूर है जब भारत की गरिमा और सुरक्षा पर कोई आंच न आए।” मुस्लिम समुदाय के बीच भी जागरूकता और राष्ट्रहित की भावना साफ़ दिखती है।

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