लाल आलू नहीं लाल खतरा है ये! कैमिकल की चमक से न हों गुमराह

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

गोरखपुर समेत यूपी के कई जिलों में सब्जी मंडियों में ऐसे आलू की आपूर्ति हो रही है जो देखने में तो लाजवाब लगते हैं, लेकिन अंदर से हो सकते हैं ज़हर के डिब्बे। जी हां, सहायक आयुक्त खाद्य डॉ. सुधीर कुमार सिंह ने बताया कि इन आलुओं को रासायनिक रंग से कोट किया गया है, और वो रंग सिर्फ छिलके पर नहीं, अंदर तक घुस चुका है।

क्या है इस कैमिकल का खेल?

इन आलुओं को रंगने में इस्तेमाल हो रहा है Iron Oxide यानी आयरन ऑक्साइड – वो तत्व जो आमतौर पर मिलता है पेंट, सिरेमिक और कॉस्मेटिक्स में।

लेकिन सब्ज़ियों पर इसका उपयोग FSSAI और अंतरराष्ट्रीय मानकों के तहत सख्त रूप से प्रतिबंधित है।

सेहत पर क्या असर डालता है Iron Oxide?

  • पेट की गड़बड़ी, मितली और उल्टी

  • शरीर में मेटल की अधिकता, जिससे लीवर, किडनी और डाइजेशन सिस्टम प्रभावित हो सकते हैं

  • कुछ संवेदनशील व्यक्तियों में हो सकता है आयरन ओवरलोडिंग डिसऑर्डर

“सस्ता और चमकदार खरीदना भारी पड़ सकता है आपकी जेब और सेहत – दोनों पर।”

क्यों हो रही है ये मिलावट?

  • पुराने आलुओं को दिखाना है ताज़ा

  • मंडियों में चमकीला माल बिकता है ज़्यादा

  • आम ग्राहक को लगती है “माल बढ़िया है!”

लेकिन असल में बढ़िया सिर्फ रंग है, भीतर तो मिलावट की जड़ें गहरी हैं।

क्या करें ग्राहक?

  • अस्वाभाविक लाल, पीले या चटक रंग वाले आलू से बचें

  • छिलके पर अगर रंग ज़्यादा गहरा लगे या हाथ लगाने पर रंग छूटे – तुरंत सतर्क हो जाएं

  • अगर आलू का रंग भीतर तक समाया हो – उसे बिल्कुल न खरीदें

  • संदेह हो तो स्थानीय खाद्य सुरक्षा विभाग या प्रशासन को सूचना दें

“स्वास्थ्य से बड़ा कोई डिस्काउंट नहीं होता।”

FSSAI का क्या कहना है?

FSSAI ने भी साफ किया है कि:

  • Iron Oxide किसी भी ताज़ी सब्ज़ी पर अनुमन्य नहीं है

  • खाद्य ग्रेड वैक्स का उपयोग सिर्फ अंकुरण रोकने के लिए किया जा सकता है, न कि दिखावे के लिए

कहाँ से आ रहे हैं ये रंगे-फंगे आलू?

  • बाराबंकी

  • उन्नाव

  • लखनऊ

  • कानपुर

इन जिलों से कृत्रिम रूप से रंगे आलू गोरखपुर और अन्य मंडियों में पहुंच रहे हैं।

“आलू का रंग देखकर भाव मत लगाइए, सेहत के लिए ‘रंगीन’ बन सकता है ‘खौफनाक’!”

अगली बार जब सब्ज़ी मंडी जाएं तो सिर्फ आलू का भाव न पूछें, उसका हाल भी जांचें। ये समय है सिर्फ सतर्क रहने का नहीं, बल्कि संपर्क करने का – फूड विभाग से, प्रशासन से, और जागरूकता से।

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