
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) शुक्रवार को पाकिस्तान को दिए जा रहे 7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की अगली किश्त पर विचार करेगा। लेकिन इस बार मामला सिर्फ आर्थिक नहीं, भू-राजनीतिक और नैतिक भी है।
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ऐसे समय में जब भारत ने पाकिस्तान पर ड्रोन और मिसाइल हमले करने का आरोप लगाया है, IMF का यह फैसला अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए विश्वसनीयता की परीक्षा बन चुका है।
भारत का सख्त संदेश: फंडिंग से पहले आतंक का लेखा-जोखा देखिए
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने गुरुवार को स्पष्ट कहा –
“हम IMF बोर्ड के सामने अपना पक्ष रख रहे हैं। उन्हें गंभीरता से विचार करना चाहिए कि पिछले तीन दशकों के बेलआउट पैकेज पाकिस्तान में क्या बदलाव लाए हैं – आर्थिक सुधार या आतंक की पुनरावृत्ति?”
IMF की यह बैठक ऐसे वक्त हो रही है जब भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव बढ़ रहा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की भूमिका फिर कटघरे में है।
पाकिस्तान का इनकार और भारत का आक्रोश
भारत ने हाल ही में कहा कि पाकिस्तान ने उसके सैन्य ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए हैं। जबकि पाकिस्तान ने इन आरोपों को “बेबुनियाद” बताया। लेकिन भारत का कहना है कि यह कोई पहली बार नहीं है जब IMF फंड के पीछे छिपे आतंक पर आंखें मूंदी गई हैं।
अजय बंगा से मोदी की मुलाकात, वर्ल्ड बैंक ने पल्ला झाड़ा
इस भूचाल के बीच वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की। वहीं सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान की आपत्ति को लेकर वर्ल्ड बैंक ने साफ किया कि वह हस्तक्षेप नहीं करेगा, जिससे भारत को स्पष्ट कूटनीतिक समर्थन मिला।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था: ICU में पड़ा मरीज या रणनीतिक खतरा?
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लंबे समय से अति-मुद्रास्फीति, विदेशी कर्ज़ और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही है। IMF से मिलने वाला फंड उसकी अस्थायी सांस है। लेकिन भारत सवाल पूछ रहा है –
“क्या ये फंड वाकई जनता की मदद करेगा या आतंक को फिर से ऑक्सीजन देगा?”
IMF की विश्वसनीयता भी दांव पर है
अब सवाल सिर्फ पाकिस्तान को पैसे देने का नहीं, वैश्विक आर्थिक संस्थाओं की नैतिक जिम्मेदारी का भी है। क्या IMF यह साबित कर पाएगा कि उसके फंड्स केवल विकास के लिए हैं, न कि विस्फोट के लिए?
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