
लोकसभा में मनरेगा (MGNREGA) की जगह ‘जी राम जी’ बिल पेश होते ही सियासी तापमान अचानक हाई हो गया।
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा बिल पेश किए जाने के बाद कांग्रेस, टीएमसी समेत विपक्षी दलों ने इसे लेकर जोरदार विरोध दर्ज कराया।
सदन में बहस कम और नारेबाज़ी ज़्यादा दिखी—नतीजा, कार्यवाही दोपहर 2 बजे तक स्थगित।
प्रियंका गांधी का तीखा हमला: “नाम बदलने की सनक”
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सरकार पर सीधा वार करते हुए कहा कि “हर योजना का नाम बदलने की सनक समझ नहीं आती।”
उन्होंने सवाल उठाया कि नाम बदलने में सरकारी खजाने से पैसा खर्च होता है। रोजगार के दिन बढ़ाए गए, लेकिन मजदूरी नहीं बढ़ाई गई। इस बिल से केंद्र का कंट्रोल बढ़ेगा, राज्यों की जिम्मेदारी घटेगी।
प्रियंका ने मांग की कि इस बिल को वापस लिया जाए। गहन चर्चा के लिए स्थायी समिति को भेजा जाए। किसी विधेयक को “निजी महत्वाकांक्षा या सनक” के आधार पर न लाया जाए।
विपक्ष का आरोप: चर्चा नहीं, फैसला जल्दी
विपक्षी दलों का कहना है कि यह विधेयक बिना पर्याप्त बहस और बिना सदन की सलाह लिए आगे बढ़ाया जा रहा है। संसद परिसर में विपक्षी सांसदों ने महात्मा गांधी की तस्वीर वाले पोस्टर लेकर प्रदर्शन किया और “महात्मा गांधी अमर रहें” के नारे लगाए।
सरकार का पलटवार: “राम नाम से परेशानी क्यों?”
केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा— “यह बिल राम राज्य की स्थापना के लिए है। राम का नाम आने से इन्हें तकलीफ है।”

उन्होंने कहा कि यह बिल गरीबों के कल्याण के लिए है। भारत के संपूर्ण विकास की नींव रखेगा। महात्मा गांधी भी राम राज्य की कल्पना करते थे। “गांधी दिल में हैं, राम रोम-रोम में”।
सरकार का दावा है कि बिल किसी भी तरह से कमजोर नहीं है।
योजना बदली या नाम का पुनर्जन्म?
मनरेगा से ‘जी राम जी’ तक का सफर बताता है कि भारत में कभी-कभी नीति से ज़्यादा नेमिंग स्ट्रेटेजी अहम हो जाती है। मजदूरी वही, ज़मीन वही, काम वही— बस पोस्टर और नाम बदल गया।
‘जी राम जी’ बिल अब सिर्फ़ एक सामाजिक योजना नहीं, बल्कि नाम, विचारधारा और सत्ता की राजनीति का नया मैदान बन चुका है।
आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि यह बदलाव गरीबों के लिए राहत है या सिर्फ़ संसद का एक और हाई-वोल्टेज ड्रामा।
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