डायमंड चाहिए था… नाली मिल गई- कंगना को नहीं भा रही सांसदगिरी!

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

राजनीति में आने से पहले कंगना रनौत ने बॉलीवुड में हर रोल निभाया – रिवॉल्वर रानी भी बनीं और झांसी की रानी भी। लेकिन जब असल ज़िंदगी में “जनता की रानी” बनने की बारी आई, तो उन्हें लगा कि स्क्रिप्ट थोड़ी भारी है। पॉडकास्ट में उन्होंने खुले शब्दों में कहा कि “मुझे राजनीति में मजा नहीं आ रहा है” – यानि अब क्वीन के चेहरे पर मुस्कान नहीं, टेंशन की लकीरें हैं।

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“मैं स्वार्थी रही हूं, मुझे डायमंड चाहिए!”

कंगना की ईमानदारी काबिल-ए-तारीफ है – उन्होंने माना कि उन्होंने कभी समाज सेवा का सपना नहीं देखा।

“मैं बड़ी कार, बड़ा घर, और डायमंड चाहती हूं…”
अब सांसद बनने के बाद जब जनता टूटी सड़क और बहती नाली लेकर उनके दरवाजे आ रही है, तो उनकी पुरानी ख्वाहिशें धुंधली होने लगी हैं। शायद उन्हें लगा था कि राजनीति भी कोई अवॉर्ड शो होगा – रेड कारपेट, फोटोशूट और एक भाषण… लेकिन यहां तो गड्ढे ही गड्ढे हैं!

जनता: “मैडम, नाली टूट गई है।” कंगना: “पर मैं सांसद हूं!”

कंगना ने बताया कि लोग नालियों, सीवरेज और टूटी गलियों की शिकायतें लेकर उनके पास आ रहे हैं। उन्होंने जब समझाने की कोशिश की कि ये स्थानीय निकाय का मामला है, तो जवाब मिला- “आपके पास पैसा है मैडम, अपने पैसे से बनवा दो!”
अब बताइए, जिन्होंने डायमंड के लिए मेहनत की थी, उन्हें अब नाली के लिए खर्च करना पड़े — इससे बड़ी स्क्रिप्ट ट्विस्ट और क्या होगा?

“DM का काम भी मैं करूं? फिर डायमंड कौन खरीदेगा?”

कंगना का दर्द जायज़ है – सांसद बनते ही हर कोई उन्हें मल्टीटास्किंग सुपरवुमन समझ बैठा है। जनता को फर्क नहीं पड़ता कि काम किसका है, उन्हें तो बस समाधान चाहिए।
लेकिन कंगना पूछ रही हैं –
“अगर हर काम मैं ही करूंगी तो फिर डायमंड के लिए टाइम कब मिलेगा?”
एक तरफ राजनीति की गंदगी, दूसरी तरफ फोटोशूट का ग्लैमर – ऐसी दो दुनियाओं में संतुलन आसान नहीं!

“पहुँचने में देरी हुई तो तूफान आ गया!”

हिमाचल में भारी बारिश और बादल फटने की खबरें आईं, तब मंडी की जनता ने अपनी सांसद का इंतज़ार किया। लेकिन जब कंगना थोड़ी देर से पहुंचीं, तो आलोचना की बारिश भी शुरू हो गई।
कांग्रेस बोली – “मंडी को छोड़ दिया!”
कंगना बोलीं – “मैं आ गई हूं, अब नालियों की चिंता छोड़ो!”
बेशक वो बाद में पहुंचीं, लेकिन कैमरे समय पर पहुंचा, और एक सांसद के रूप में उनकी मौजूदगी दर्ज हो गई।

14 महीने में ही “पॉलिटिकल फटी जींस” का एहसास?

कंगना अब कह रही हैं कि यह काम उनकी पृष्ठभूमि से मेल नहीं खाता। उन्हें एक्टिविज्म में मज़ा आता था, लेकिन यह सांसदगिरी, नालियों और पंचायतों वाली ज़िंदगी उन्हें रास नहीं आ रही।
सवाल है –
क्या राजनीति उनका रोल है या बस एक कैमियो?
क्योंकि जनता कैमियो नहीं, फुल टाइम नेता चाहती है।

“पिक्चर अभी बाकी है…”

कंगना भले ही राजनीति में आने के बाद थोड़ा परेशान लग रही हों, लेकिन फिल्मी दुनिया के मुकाबले यह मंच कहीं ज्यादा demanding है। यहां कोई डायरेक्टर नहीं जो रीटेक दे, और कोई मेकअप आर्टिस्ट नहीं जो बातों को खूबसूरत बना दे।

लेकिन जनता का भरोसा पाने के लिए डायमंड से ज्यादा जरूरी है जूते घिसना और गलियों में चलना। तो अब देखना यह है कि कंगना रनौत नेता बनेंगी या वापस स्टारडम की ओर लौटेंगी।

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