जंगल में मौत– बंदर, बाघ और तेंदुआ बना टॉक्सिक टारगेट

अजमल शाह
अजमल शाह

जब ज़हर सिर्फ़ सांपों में नहीं, इंसानों की सोच में हो- कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिजर्व और महादेश्वर हिल्स वन्यजीव अभयारण्य से जो तस्वीरें आई हैं, वो जंगल की नहीं, मानो किसी क्राइम सीरीज़ की स्क्रिप्ट लग रही हैं।
20 बंदरों की लाशें, बोरियों में भरकर फेंकी गईं — दो बंदर बचे, मगर उनकी आँखों में इंसानों पर से भरोसे की आख़िरी बूंद भी नज़र नहीं आ रही थी।

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वन्यजीवों का सफ़ाया अब ‘शिकार’ नहीं रहा, ये एक तरह की “प्लान्ड प्वाइज़निंग” होती जा रही है।

बाघिन और शावकों की मौत – जंगल की माँ, और उसके बच्चे अब मौन

एमएम हिल्स अभयारण्य में एक बाघिन और उसके चार शावकों की मौत कीटनाशक से हुई। यानि अब शिकारी गोली नहीं, बल्कि फॉर्मेसी से ज़हर खरीदकर ‘वन्य अपराध’ कर रहे हैं।

वन मंत्री ईश्वर खांद्रे बोले – हमने जांच के आदेश दिए हैं।

लेकिन जांच का मतलब – “रिपोर्ट बनेगी, प्रेस कांफ्रेंस होगी, और फिर अगली मौत तक सब सो जाएंगे।”

वन संरक्षक बोले: पोस्टमॉर्टम हो गया, अब फोरेंसिक की बारी है

बांदीपुर टाइगर रिजर्व के संरक्षक एस प्रभाकरण ने कहा – “आरंभिक रिपोर्ट ज़हर की ओर इशारा कर रही है, पर निष्कर्ष नहीं देंगे। इंतज़ार कीजिए।”

मतलब – ‘सस्पेंस’ बनाए रखो, क्योंकि जंगल भी अब थ्रिलर ज़ोन है।

तेंदुआ भी गया – शिकारी का निशाना सटीक और साइलेंट

बाघों और बंदरों के बाद अब एक तेंदुए का भी शिकार हुआ है। शायद शिकारियों ने अब जंगल में ‘विविधता लाने’ का ठेका ले रखा है।

ये जंगल अब वन्यजीव संरक्षण का केंद्र कम, और ‘मौत की मिनी सीरीज़’ ज़्यादा बनता जा रहा है।

जांच, रिपोर्ट, प्रेस रिलीज़ – और फिर वही सन्नाटा

हर मौत पर एक ‘बोर्ड मीटिंग’ होती है, कुछ ट्वीट्स किए जाते हैं, कैमरे सामने रख दिए जाते हैं – लेकिन बाघ, बंदर और तेंदुए को न्याय नहीं मिलता, बस आंकड़ों में दफ्न कर दिया जाता है।

जंगल को शिकारी से नहीं, सिस्टम से डर है

जब जानवर ज़हर से मर रहे हैं, तो जंगल का मौन चीख़ रहा है। वन्यजीवों की मौत पर अब संवेदनाएं नहीं, “जांच के आदेश” दिए जाते हैं – जैसे सरकार कह रही हो, हम दुखी हैं, लेकिन इंतज़ार करिए, Excel शीट पर सब लिख लेंगे।

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