वोट काटे, DM नहीं हटाए, और अब मेल की रसीद भी है — बोले अखिलेश

अजमल शाह
अजमल शाह

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव फिर एक बार चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा करते नजर आए। उनके निशाने पर था — वोट चोरी, फर्जी वोटर डिलीशन, और पिछड़ी जातियों के साथ साजिश

इस बार अखिलेश बिना कागज नहीं आए। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाकायदा मेल की रसीद, हटाए गए अधिकारियों की पुरानी लिस्ट, और फर्जी वोटों का डाटा मीडिया को थमाया। मतलब अब सबूतों के साथ “डंके की चोट” पर आरोप लगाए गए हैं।

2017 में हटे थे अधिकारी, अब क्यों नहीं?

अखिलेश का तर्क है कि 2017 में चुनाव आयोग ने निष्पक्षता दिखाते हुए कई DM और अधिकारियों को हटाया था, लेकिन उसके बाद क्या हुआ?

“2019, 2022 और 2024 में क्या एक भी अधिकारी को हटाया गया? नहीं ना? मतलब सब सेटिंग है!”

उन्होंने कहा कि अगर एक DM को हटाने से वोट सही हो सकते हैं, तो फिर अब हटाने में इतनी कंजूसी क्यों?

“पिछड़ों के वोट काटते हैं, और फिर कहते हैं हम ही वोट दिया!”

अखिलेश यादव ने बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि वोटर लिस्ट से जानबूझकर पिछड़ी जातियों के वोट हटाए जा रहे हैं

“ये लोग हमारे वोट काटते हैं, और फिर जीत के बाद कहते हैं देखो, हमें पिछड़ों का साथ मिला!”

ये बात उन्होंने कहकर सीधे BJP और चुनाव आयोग के बीच ‘अनदेखी दोस्ती’ का इशारा भी कर दिया।

मेल की रसीद और वोट डिलीशन लिस्ट — अखिलेश का सबूतों वाला स्टाइल

इस बार अखिलेश ने सिर्फ बयान नहीं दिया, उन्होंने सबूतों की पोटली भी खोली। मीडिया वालों को मेल की रसीद, वोटर डिलीशन लिस्ट और अन्य कागजात देकर कहा:

“अब इलेक्शन कमीशन की बात आई है, तो मैं कागज के साथ बात करूंगा।”

यह एक तरह से चुनाव आयोग पर ओपन चैलेंज था — ‘अगर हिम्मत है, तो इन कागजों को झूठा साबित करके दिखाओ!’

क्या चुनाव आयोग वाकई BJP की सुनता है?

अखिलेश यादव ने इशारा किया कि उत्तर प्रदेश में BJP सरकार आने के बाद से किसी भी अधिकारी को चुनावी गड़बड़ी के लिए नहीं हटाया गया

“हमने कई बार शिकायत की, पर सुनवाई नहीं हुई। इससे बड़ा सबूत क्या चाहिए कि चुनाव आयोग BJP की ही सुनता है।”

चुनाव या सेटिंग का महा-मैच?

देश में चुनाव अब सिर्फ वोटिंग का इवेंट नहीं रह गया है, यह विश्वास बनाम व्यवस्था की लड़ाई बन चुका है। अखिलेश यादव बार-बार वोट कटने, DM न हटने, और पिछड़ों के साथ साजिश का मुद्दा उठा रहे हैं।

लेकिन असली सवाल ये है:
क्या ये आवाज सिर्फ एक ‘हारे हुए नेता का शिकवा’ है,
या फिर लोकतंत्र में सच में कुछ गड़बड़ चल रही है?

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