
राधिका की हत्या कोई पहली घटना नहीं थी, लेकिन इसने रिश्तों की एक अनकही पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पेश की है। क्या ये महज़ एक आपराधिक केस है, या हमारे घरों के भीतर रिश्तों की रुग्णता का संकेत?
बेटी के कमरे से आती चुप्पी की चीख और बाप की व्यस्तता के बीच संवाद कब गुम हो गया, ये किसी को नहीं पता चला।
“बेटी क्या कर रही है?” — इस सवाल की जगह अब ‘लोकेशन ऑन है?’ ने ले ली है।
राजा रघुवंशी मर्डर केस- बेटियां बच गईं, अब बेटों की बारी है! पोस्टर पॉलिटिक्स
पिता अब अभिभावक नहीं, वाई-फाई मॉनिटर हैं!
सोशल मीडिया ने घर में संवाद की जगह GIFs, Reels और Emojis को दे दी है। बेटी कहती है, “डैड, मैं इंस्टा पर देखती हूं आप क्या सोचते हो,” और बाप कहते हैं, “तू कहां टैग कर रही है बेटा?”
रिश्ते अब नोटिफिकेशन की तरह हैं — म्यूट कर दिए गए हैं।
रिश्ते अब डिजिटल हैं, इमोशनल नहीं
राधिका की हत्या के बाद जो चुप्पी उसके पिता की आंखों में दिखी, वो एक सवाल पूछ रही थी- क्या हम ‘संवेदनशील पिता’ बनने में इतने लेट हो गए कि बेटी का मन ही हमसे मर गया?
“हम CCTV तो लगा लेते हैं, लेकिन दिल की विंडो अपडेट नहीं करते”
डायरी से डिलीट तक — बेटी की ज़िंदगी बाप के लिए ब्लाइंडस्पॉट क्यों है?
पिता बेटी को ‘बचपन की गुड़िया’ समझते रहे और बेटी बड़े होते-होते इंटरनेट की शेरनी बन गई। जब बाप ने गौर किया, तब तक बेटी ने खुद को ‘अनफॉलो’ कर लिया था।
Social Media vs Sanskaar: किसने मारा बेटी को?
-
इंस्टाग्राम पर वो ‘बोल्ड’ थी।
-
रियल लाइफ में वो ‘साइलेंट’ थी।
-
बाप समझते थे कि बेटी ‘स्टोरी’ डालती है, लेकिन उन्होंने उसकी ‘कहानी’ कभी नहीं सुनी।
समाधान: संवाद में निवेश कीजिए, सर्विलांस में नहीं
बेटी की डायरी पढ़ने से अच्छा है, उससे बात कीजिए। पासवर्ड जानने से बेहतर है, उसका भरोसा जीतिए। ‘बचपन की यादें’ शेयर करने से अच्छा है, बड़े होते मन का हाल सुनिए।
अंत में:
राधिका की हत्या एक केस नहीं, एक चेतावनी है। बाप अगर सिर्फ गार्जियन बनकर रहेंगे, और बेटी सिर्फ स्क्रीन फ्रेंडली बनेगी, तो घर की लाइट्स ऑन होंगी, लेकिन रिश्ते डार्क मोड में चले जाएंगे।
पुराना टैक्स लड्डू अच्छा या नया? इनकम टैक्स कैलकुलेटर बताएगा