
एयर इंडिया फ्लाइट AI‑171 दुर्घटना में अपनी बेटी नगनथोई शर्मा खोने वाले उनके पिता, के. नंदेशकुमार शर्मा, ने AAIB की शुरुआती जांच रिपोर्ट के बारे में अपना दर्द बयां किया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि उन्हें तकनीकी बातों की समझ नहीं आती, लेकिन “उसकी किस्मत में वह लिखा था”।
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रिपोर्ट vs पिता की सोच: क्या तकनीकी खुलासा मायने रखता है?
कुमार ने कहा, “मैं शिक्षित नहीं हूँ, मुझे ये तकनीकी बातें समझ नहीं आतीं… मौत उस दिन उसकी किस्मत में थी।”
उनकी इस प्रतिक्रिया में गहरी पीड़ा है — रिपोर्ट से फ़र्क़ पड़े या नहीं, यह सवाल अब उनका व्यक्तिगत सच बन चुका है।
परिवार का असमंजस: सांत्वना नहीं, सोशल मीडिया पर अपडेट
उन्होंने यह भी बताया कि हादसे की जानकारी और राहत‑बचाव की सूचना उन्हें केवल सोशल मीडिया से मिली। एयर इंडिया या सरकार की ओर से कोई व्यक्तिगत संपर्क नहीं हुआ, जिससे परिवार की बेचैनी और बढ़ गई।
अंतिम संस्कार का आग्रह: “बेटी को घर ले जाना चाहते हैं”
बेटे-बेटियों के साथ सार्वजनिक मीडिया संवाद में भगवान की मर्जी पर विश्वास करते हुए उन्होंने एक भावुक अपील की कि “बेटी के शव को दिए जाए ताकि उन्हें घर ले जाकर अंतिम संस्कार कर सकें”।
मदद की घोषणा — लेकिन परिवार तक नहीं पहुँची
टाटा समूह ने मृतकों के परिवार को 1 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता की घोषणा की। लेकिन परिवार की शिकायत है कि सोशल मीडिया पर अपडेट छोड़िए, एयर इंडिया या राज्य सरकार की ओर से कोई व्यक्तिगत सहायता तक नहीं मिली।
एक बेटी चली गई, परिवार को आवाज नहीं मिली
ये प्रतिक्रिया हमें याद दिलाती है कि तकनीकी रिपोर्ट और सरकारी बयान जब तक मानव संवेदनाओं से जुड़ते नहीं, तब तक सच‑साक्ष्य ही अधूरा रह जाता है।
पिता की पुकार है विशुद्ध मानवता की — “बेटी को घर लौटाइए, ज़िम्मेदारी निभाइए।”
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रिपोर्ट तकनीकी रूप से महत्वपूर्ण जरूर है, लेकिन परिवार के मन में सांत्वना और जवाबदेही की कमी उसी दुःख से बड़ी है।
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किस्मत, सामाजिक विस्तार और मानव संवेदना के बीच की खाई को भरने की ज़रूरत अब और ज्यादा स्पष्ट हो गई है।