
झोब में जब यात्रियों को बस से उतारकर मार दिया गया, तब मानवता ने शर्म से अपना मुंह छिपा लिया। मगर पाकिस्तान के हुक्मरानों ने शायद फिर वही स्क्रिप्ट निकाली होगी – “ये आतंकवादी नहीं, आज़ादी के लड़ाके हैं…” लेकिन ठहरिए, यह कश्मीर नहीं है। यहाँ शिकार बने हैं वो आम पाकिस्तानी जिनका बलूचिस्तान से कोई लेना-देना भी नहीं था।
पाकिस्तान की दोहरी नीति: बलूच = आतंकवादी, कश्मीरी आतंकी = नायक?
जब भारत अपने नागरिकों की रक्षा करता है, तो पाकिस्तान तुरन्त यूएन, ओआईसी और ट्विटर पर एक्टिव हो जाता है — “कश्मीरी स्वतंत्रता सेनानी मारे गए!” लेकिन जब झोब में निर्दोषों को कत्ल किया जाता है, तो इमरान हो या शहबाज़, सबको खांसी लग जाती है।
क्या इस बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगा? या बलूचों को फिर से ‘आंतरिक खतरा’ कहकर दबा दिया जाएगा?
डबल स्टैंडर्ड का डिक्शनरी वर्ज़न = पाकिस्तान
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कश्मीर में आतंकी मरें → ‘शहीद’
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बलूचिस्तान में आम नागरिक मारे जाएं → ‘जांच जारी है’
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UN में भाषण → ‘ह्यूमन राइट्स वायलेशन!’
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घर में नरसंहार → ‘इंटर्नल मैटर प्लीज!’
वाह भई, इतनी फुर्ती से दोहरा मापदंड सिर्फ पाकिस्तान ही निभा सकता है!
अगर यही भारत में होता…
कल्पना कीजिए, अगर ये भारत के किसी राज्य में होता, तो न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर लंदन के हाइड पार्क तक, प्रोटेस्ट मार्च की भरमार होती। लेकिन चूंकि ये पाकिस्तान में हुआ है, और हत्यारे बलूच विद्रोही हैं — तो ग्लोबल ‘लिबरल बिरादरी’ भी छुट्टी पर चली जाती है।
सवाल ये नहीं कि कौन मारा गया, सवाल ये है – कौन मार रहा है?
जिसे पाकिस्तान आज ‘आतंकी’ कह रहा है, वही उसके लिए कल ‘डायलॉग पार्टनर’ बन सकता है – अगर वो कश्मीर में कुछ हलचल करे। क्या अब भी पाकिस्तान को लगता है कि उसकी नीति गंभीरता से ली जाती है?
‘गौर से देखिए इस चेहरे को…’
बलूचिस्तान की यह घटना न केवल मानवता के खिलाफ है, बल्कि पाकिस्तान की खुद के साथ बेईमानी भी उजागर करती है। सवाल यही है – क्या जो आतंक कश्मीर में ‘हीरो’ है, वो बलूचिस्तान में ‘हत्यारा’ कैसे हो गया?
या फिर पाकिस्तान को आइना दिखाने वाला कोई बचा ही नहीं?