बिहार में वोट कटवा नहीं, “वोट चुराने” आए हैं पीके?

आलोक सिंह
आलोक सिंह

बिहार चुनाव में अब मुकाबला सीधा नहीं रह गया। ना ही सिर्फ NDA बनाम RJD का पुराना खेल जारी है। अब मैदान में उतर आए हैं प्रशांत किशोर – चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने “जन सुराज” वाले पीके, जिनकी पदयात्रा और सभाओं की भीड़ ने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को माथा पकड़ने पर मजबूर कर दिया है।

हर जाति की भीड़, हर वर्ग का झुकाव – पीके का “अराजनीतिक” कमाल?

पीके की सभाओं में भीड़ देखकर हर कोई पूछ रहा है – “इतने लोग किसके वोट बैंक से उठकर आए?” यादव हों, भूमिहार या मुस्लिम – सभी की उपस्थिति ने विश्लेषकों को उधेड़बुन में डाल दिया है। पिछली बार चिराग और कुशवाहा ने चुनाव को बहुकोणीय बनाया था, इस बार कहानी का हीरो हैं – प्रशांत किशोर।

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2025 का समीकरण: वोट बैंक की जंग या भीड़ का छलावा?

2015 में मुस्लिम वोटर 80% RJD-कांग्रेस को मिले थे। 2020 में थोड़ा खिसका, लेकिन फिर भी तेजस्वी का सहारा बना रहा। अब सवाल है – क्या पीके इसमें सेंध लगा पाएंगे? या फिर ये भीड़ बस देखने भर की है? एनडीए वाले कह रहे हैं: “देख लेंगे… लेकिन वोट तो हमारे ही हैं!”

PK के तीन पिलर वोटर: ब्राह्मण, मुसलमान और युवा

  1. ब्राह्मण-भूमिहार वर्ग, जिन्हें पहली बार लग रहा है कि उनका नेता सीएम बन सकता है।

  2. मुस्लिम वोटर, जिन्हें अब तक सीमित विकल्प ही मिले।

  3. युवा, जिन्हें पीके की ‘साफ राजनीति’ और भाषणों ने मोह लिया है।

पर RJD को राहत है – वक्फ विवाद और मुस्लिम मुद्दों पर तेजस्वी की आक्रामकता ने अभी उस वोट को बांध रखा है।

RJD और NDA: दोनों को चिंता, किसका वोट कौन काटेगा?

RJD को डर है कि पीके मुस्लिम-युवा समीकरण में घुस गए तो झटका लगेगा। वहीं, NDA का ब्राह्मण-भूमिहार वोट बैंक भी थोड़ा डगमगाए तो मुश्किल खड़ी हो सकती है। बीजेपी के पास सीएम फेस नहीं है, इसलिए भरोसा अब भी सिर्फ मोदी लहर पर है।

जनता की जुबान: “साहब, PK के साथ भीड़ तो है, वोट भी होगा क्या?”

सवाल वही पुराना – “भीड़ वोट में बदलेगी या नहीं?”
राजनीति के जानकार मान रहे हैं, अगर PK सिर्फ 5-6% वोट भी काट ले गए, तो किंगमेकर या खुद ‘किंग’ भी बन सकते हैं।

राजनीतिक तूफान के बीच कौन टिकेगा?

बिहार चुनाव 2025 में कहानी साधारण नहीं होगी। PK जहां गठबंधनों को ध्रुवीकरण से बाहर लाना चाहते हैं, वहीं पुराने खिलाड़ी इसे जातीय गुणा-गणित में घसीट लाना चाहते हैं।

बिहार में चुनाव नहीं, शतरंज की बिसात बिछी है!

प्रशांत किशोर का दांव बड़ा है – वो न केवल भीड़ बटोर रहे हैं, बल्कि मन और मुद्दों पर भी पकड़ बनाने की कोशिश में हैं। सवाल यह नहीं कि वह किसके वोट काटेंगे… सवाल है – किसके सपनों की सत्ता वे ‘गुपचुप’ में खा जाएंगे?

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