राजनीति छोड़, खेत जोतेंगे शाह! वेद-उपनिषद के साथ खेती का मन

सैफी हुसैन
सैफी हुसैन

गृह मंत्री अमित शाह ने एक नया राजनीतिक ट्रैक्टर स्टार्ट कर दिया है — और वह राजनीति का नहीं, प्राकृतिक खेती का है। 9 जुलाई 2025 को अहमदाबाद में आयोजित ‘सहकार-संवाद’ कार्यक्रम में उन्होंने ऐलान किया कि रिटायरमेंट के बाद उनका लक्ष्य वेद-उपनिषद पढ़ना और खेती करना होगा। यानी कल तक जो विपक्ष को जोत रहे थे, अब खेत जोतेंगे

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वेद-उपनिषद और उर्वरक-मुक्त दर्शन

शाह ने स्पष्ट किया, “मैंने तय कर लिया है कि रिटायरमेंट के बाद मैं वेद-उपनिषद पढ़ूंगा।”
राजनीति के बाद जब कोई इंसान ज्ञान की ओर रुख करता है, तो यह बदलाव नहीं, कलियुग की क्रांति होती है। अब ज़रा सोचिए – जिस इंसान ने पूरे देश में सत्ता की खेती की, वह अब खेती में सत्ता ढूंढेंगे।

प्राकृतिक खेती: राजनीति से शुद्ध विकल्प?

शाह ने प्राकृतिक खेती को वैज्ञानिक प्रयोग बताया और बोले कि इससे बीमारियां घटती हैं, उत्पादन बढ़ता है। उनका मानना है कि फर्टिलाइज़र वाला गेहूं “कैंसर, बीपी और थायरॉइड” जैसी बीमारियों की जड़ है। मतलब अब “विकास” नहीं, ‘गौमूत्र आधारित उपज’ ही राष्ट्रीय मंत्र बनने वाला है?

राजनीति की पॉलिसी से खेती की पद्धति तक

शाह ने कहा कि वह अभी भी अपनी ज़मीन पर प्राकृतिक खेती करते हैं और “उत्पादन डेढ़ गुना बढ़ गया है”। अगर यह फार्मूला राजनीति में भी काम करता, तो विपक्ष 1/2 पर सिमट जाता। हो सकता है आगे चलकर खेती में भी ‘डबल इंजन’ का फार्मूला लॉन्च हो जाए।

‘सहकार-संवाद’ में महिलाओं से संवाद

यह बयान उन्होंने गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान की सहकारी महिलाओं से संवाद के दौरान दिया। महिलाएं कार्यक्रम में भारी संख्या में पहुंचीं और अब शायद वे सोच रही हों — “अगर अमित शाह खेती करने लगे, तो नेता कौन रहेगा?”
(जवाब: शायद वही जो जैविक नहीं होंगे।)

क्या ये रिटायरमेंट प्लान है या नई पारी?

सवाल ये है कि क्या ये वास्तव में रिटायरमेंट प्लान है या जनता को दिखाने वाला “ट्रेलर ऑफ फ्यूचर फिल्म”?
खैर, जो भी हो, इस प्लान में अध्यात्म है, स्वास्थ्य है, और सबसे बड़ी बात — राजनीति नहीं है।

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