
कभी लखनऊ के सरकारी डिग्री कॉलेजों में दाख़िला लेना ऐसा लगता था जैसे UPSC पास कर लिया हो—अब वही कॉलेज “पहले आओ, सीट पाओ” के बोर्ड टांगकर बैठे हैं। जुलाई की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन मेरिट की चमक से दूर सरकारी कॉलेजों की क्लासरूम अब भी सूनी हैं। नतीजा? अब मेरिट, काउंसलिंग और तमाम संस्कारों को किनारे रखकर सीधा दाख़िला देने का नारा बुलंद किया जा रहा है।
ग़ज़ा संघर्ष विराम पर क़तर में हमास-इसराइल वार्ता, संशोधन पर टकराव
सीटें भरी नहीं, तो शराफत से एडमिशन दे दो!
लखनऊ विश्वविद्यालय से जुड़े 19 एडेड कॉलेजों में से ज़्यादातर की हालत ऐसी है कि मेरिट बनाएं या छात्रों की आरती उतारें, दोनों बेअसर हैं। दस से ज़्यादा कॉलेज सीधे प्रवेश दे रहे हैं—क्योंकि छात्र आ नहीं रहे और सीटें जा नहीं रहीं।
यह हालत केवल छोटे कॉलेजों की नहीं, बल्कि पुराने प्रतिष्ठित संस्थानों की भी है। चार राजकीय कॉलेजों ने भी अब ‘इंतज़ार’ को दरकिनार कर सीधे प्रवेश की रणनीति अपनाई है।
काउंसलिंग? अब नहीं… पहले फीस, फिर प्रवेश
डीएवी कॉलेज: लॉ को छोड़ बाकी सब कोर्स में सीधे प्रवेश, 800 रु में सीट पक्की।
विद्यांत कॉलेज: बीए, बीकॉम, एमकॉम… सबमें काउंसिलिंग की छुट्टी। पहले आओ, फॉर्म भरो, फीस दो और छात्र बन जाओ।
एपीसेन कॉलेज: 500 रु में बीए से एमए तक का ऑफर। तीन हजार की फीस में शिक्षा और आत्म-साक्षात्कार दोनों संभव।
नवयुग कॉलेज: बीए से एमकॉम तक डायरेक्ट एडमिशन, बीएड के लिए बस एक शर्त—प्रवेश परीक्षा।
अवध कॉलेज: दो दिन की काउंसलिंग (मंगलवार-शुक्रवार)। बाकी दिन एडमिशन का खुला मैदान।
खुन खुन जी कॉलेज: ऑन स्पॉट एडमिशन का नया फार्मूला। 500 रु दीजिए और छात्र बनिए।
शशि भूषण कॉलेज: ऑफलाइन आवेदन, ऑन-द-स्पॉट फॉर्म और तुरंत प्रवेश। डिजिटल इंडिया को नमस्ते!
नारी शिक्षा निकेतन: यहां हिंदी में एमए भी है, और मौके पर दाख़िला भी।
महिला डिग्री कॉलेज: पहले मेरिट बनती थी, अब सीटें नहीं भरती। सब कुछ ऑफलाइन है, एडमिशन भी और उम्मीद भी।
कृष्णा देवी गर्ल्स कॉलेज: एकमात्र कॉलेज जहां अभी भी थोड़ी बहुत मेरिट बची है। आवेदन की आखिरी तारीख 5 जुलाई।
डिग्री तो है, लेकिन छात्र कहां हैं?
पहले लखनऊ के सरकारी कॉलेज क्षेत्रीय शिक्षा का केंद्र थे। लेकिन अब जब लखनऊ यूनिवर्सिटी ने पांच ज़िलों में 400 कॉलेजों को संबद्ध कर दिया है, तो छात्र वहीं रुक गए हैं।
और रही सही कसर पारंपरिक कोर्सेस (बीए, बीकॉम, बीएससी) ने पूरी कर दी है—जिनमें न नौकरी दिखती है, न पैशन। अब स्टूडेंट्स का झुकाव प्रोफेशनल डिग्री और स्किल बेस्ड प्रोग्राम्स की ओर है।
क्या सरकारी कॉलेज सिर्फ इमारतें रह जाएंगे?
आज सरकारी कॉलेजों में दाखिला पाना मुश्किल नहीं, बल्कि ज़रूरत बन गया है… कॉलेजों की! शिक्षा व्यवस्था की साख और सरकारी डिग्री कॉलेजों की गरिमा दोनों पर अब गंभीर सवाल खड़े हो चुके हैं।
जिन कॉलेजों में कभी तीन मेरिट लिस्ट बनती थी, वहां आज छात्रों की राह देखी जा रही है जैसे कोई बारात आने वाली हो। सवाल ये नहीं कि प्रवेश कैसे दें, सवाल ये है कि अब दाख़िला लेगा कौन?