
जब कर्बला की तपती रेत पर इंसानियत का इम्तिहान हुआ, तब सिर्फ इमाम हुसैन (अ.स.) ही नहीं, बल्कि उनकी बहन बीबी ज़ैनब (स.अ.) भी इतिहास रच रही थीं। ज़ैनब का किरदार सिर्फ एक बहन का नहीं, बल्कि हिम्मत, सब्र और आवाज़-ए-हक़ की पहचान है।
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नौहा: ” बीबी ज़ैनब ने जब कर्बला देखा…”
बीबी ज़ैनब ने जब कर्बला देखा,
आंखों से आंसू, दिल से खुदा देखा।
भाई के लाशों पर खड़ी रही,
ज़ालिमों का भी सामना बे-ख़ौफ़ किया।क़ैद में चादर छीनी गई,
पर लहजे में तलवार रही।
यज़ीद के दरबार में बोली,
‘हक़ की फतेह हर बार रही।’
कर्बला के बाद: बीबी ज़ैनब का सफर – मातम नहीं, मिशन था
बीबी ज़ैनब (स.अ.) ने सिर्फ मातम नहीं किया, बल्कि कर्बला का संदेश दुनिया तक पहुँचाया। कैद, ज़ुल्म, दरबार — कुछ भी उनकी हिम्मत को नहीं तोड़ सका। उन्होंने बताया कि मातम और संदेश एक साथ चल सकते हैं।
बीबी ज़ैनब की आवाज़: यज़ीद के तख़्त को हिलाने वाला नौहा
“मैं ज़ैनब हूँ, अली की बेटी,
तेरा ताज मिट्टी में मिल जाएगा।
तूने कत्ल किए हैं जिस हुसैन के,
उसकी याद हर दिल में बस जाएगी!”
क्यों बीबी ज़ैनब आज भी ज़िंदा हैं?
ज़ैनब सिर्फ बीते हुए वक्त की शख्सियत नहीं हैं। वे हर उस लड़की की प्रेरणा हैं, जो अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना चाहती है। उनका किरदार बताता है कि इज़्ज़त सिर्फ पर्दे में नहीं, हिम्मत में भी होती है।
बीबी ज़ैनब (स.अ.) ने मातम में मिशन खोजा, और हर अश्क को आवाज़ बनाया। यही वजह है कि आज भी उनका नाम सुनकर आँखें भीगती हैं और दिल मजबूत होता है।
प्यास पे करबला रोया: अली असग़र अ.स. पर एक नौहा जो रूह तक हिला दे