
हिमाचल प्रदेश की वादियाँ इन दिनों सिर्फ़ टूरिज़्म की सेल्फ़ी बैकग्राउंड नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आपदा का पोस्टर बन चुकी हैं।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के मुताबिक़, भारी बारिश के चलते अब तक 69 लोगों की मौत, 110 घायल, और 700 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
सड़कों का नाम-ओ-निशान मिट चुका है, बिजली की लाइनें टूटकर उस लेवल पर आ गई हैं जहाँ सरकार की जवाबदेही अक्सर होती है – “डिस्कनेक्टेड”।
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जब मकान ढहें, सरकार 5 हज़ार दे
राज्य सरकार ने राहत का ऐलान किया है, प्रभावित परिवारों को किराए पर रहने के लिए 5,000 रुपये मिलेंगे।
मतलब, जिस व्यक्ति का पूरा घर पानी में बह गया, उसे पैसे मिलेंगे इतने कि मेट्रो सिटी में एक कमरा देखने तक का किराया ना निकले।
सवाल ये नहीं कि 5 हज़ार क्यों, सवाल ये है – क्या आपदा में सरकार भी “बजट ट्रिप” पे है?
“हेलो दिल्ली? यहाँ हिमालय डूब गया है!”
मुख्यमंत्री ने गृह मंत्री अमित शाह से बातचीत की, और आश्वासन भी मिला कि केंद्र हरसंभव सहायता देगा।
साथ ही केंद्रीय टीम हिमाचल दौरे पर भेजी जा रही है – उम्मीद है वे क्लिपबोर्ड और कैमरे साथ लाएँगे, क्योंकि आजकल राहत नहीं, रील्स पहले पहुंचती हैं।
“जैकेट पहन कर जायज़ा लो, बूट से बचाव करो!”
ऐसा अनुमान है कि जैसे ही केंद्रीय टीम आएगी, पहले हवाई सर्वे, फिर ज़मीन पर हाथ हिलाना, और फिर ड्रोन शॉट वाला वीडियो जारी होगा।
पिछली बार टीम आई थी, पैरों के नीचे की मिट्टी खिसकी थी – इस बार उम्मीद है स्क्रिप्ट कम, स्ट्रक्चर ज़्यादा देखेंगे।
‘आपदा प्रबंधन’ या ‘टेम्प्लेट रिप्लाई’?
हर बार की तरह इस बार भी सरकारी बयान वही हैं –
“स्थिति गंभीर है। राहत कार्य जारी है। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है।”
इन पंक्तियों को शायद अब ‘Ctrl+C, Ctrl+V’ के राष्ट्रीय उपयोग’ के रूप में घोषित कर देना चाहिए।
जनता कहे – ‘बच गए तो खुदा का शुक्र, मरे तो ट्विटर पर ट्रेंड’
इस बारिश ने सिर्फ़ हिमाचल की ज़मीन नहीं, लोगों की उम्मीदें भी धो डाली हैं।
सरकारें बदलती हैं, मौसम भी – पर नीति वही रहती है:
“पहले बहने दो, फिर कहने दो!”
जहां नाले बहते हैं, वहां वादे डूब जाते हैं
हिमाचल एक बार फिर साबित कर रहा है कि प्राकृतिक सुंदरता जितनी विशाल होती है, उतनी ही विशाल उपेक्षा की मार भी झेलती है।
5 हज़ार की मदद और “टीमें भेज दी गई हैं” जैसे बयानों से पहाड़ नहीं, प्रेस रिलीज़ बचाई जा सकती है।