
अब त सुनते-सुनते कान पक गइल, बाबू! “संविधान बदल देब!” “नई धारा ला देब!” “देश के दिशा पलट देब!” अरे हो!
संविधान त हमरे बड़-बुजुर्ग लिख के दे गइलें, ऊ त कहेला—”सब बराबर हईं।” बाकिर हम का करत बानी?
जात देख के दोस्ती, बिरादरी देख के वोटिंग, अउर इलाका देख के दुश्मनी! कोरिया हमसे बाद में आज़ाद भइल—आज देखीं उ कहाँ बा! हम? अबहिन भी कंचनपुरिया बनाम बेलभरिया में फँसल बानी। एसे पूछत हई—संविधान बदल के का एटलस रॉकेट उड़ाइब?
जब दिमाग अबहिन भी जात-पात के दलदल में फँसल बा, तब त सोच बदलल ज़रूरी बा, ना?
अब पढ़ीं पूरा लेख, अउर सोचिए—“देश बदली, बाकिर पहिले सोच त बदली बाबू!”
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संविधान बदलि देब? — पहिले आपन सोच त बदलिए बाबू!
अरे भाई, अब हर कोना से आवाज़ उठत बा—”संविधान बदल दीं, नया भारत बना दीं!” हम कहेनी—”का रे, संविधान बदल के रॉकेट बना लेब कि महाशक्ति हो जइब?”
जब सोच अबहिन भी ‘का नाम, का जात, कौन बिरादरी’ पे अटकल बा, तब संविधान बदल के का तीर मारब?
कोरिया निकर गइल चांद पे, हम फंसे हई जात के धंधा में!
दुनिया आगे बढ़ गइल, कोरिया जे हमसे बाद में आजाद भइल, ऊ आज चांद-तारा नापत बा। हम? अबहिन भी नाई, धोबी, कुर्मी, यादव, ब्राह्मण के हिसाब लगावत बानी। ऊ लोग चिप लगावत, हम बाभन-चमार गिनत। अब बतावा, एही से ‘नया भारत’ बनिहै का?
राजनीति ना, जातिवाद के दुकान खुलल बा
नेता जी हर पाँच साल पर ‘नव भारत’ के सपना ले के अइहें, बाकिर ओ सपना में जाति-पांति, वोट बैंक अउर बकवास भरल बा। जवन जात से वोट ज़्यादा मिली, उहे ‘विकासशील’ होई, बाकी सब के नांव कट! अब नेता लोग के पोस्टर में Vision 2047 कम, बिरादरी के नारा ज़्यादा रहत बा—”हमार समाज, हमार हक!”
जनता बनल बा कठपुतली, नेताजी के अंगूठा के नीचे
नेताजी कहत बाड़ें—”हम ही बदलीं भारत!” हम कहत हई—”पहिले जनता के गुलामी वाला माइंडसेट त बदलीं!” आज जनता सोचते बा कि जवन नेता आपन जात के ह, ऊ आपन आदमी ह।
अरे भइया, नेता त पार्टी बदलत देर नइखी करत, तू अबहिन जात देखत बाड़!
संविधान में समस्या नइखे, समस्या तो समझदारी में बा
संविधान त सबके बराबरी देत बा, बाकिर हमहीं हईं जे ओह बराबरी के कबाड़ी बना देनी। आरक्षण से ज्यादा सोच में सुधार के ज़रूरत बा।
जब ले हम सब शिक्षा, स्वास्थ्य अउर रोजगार पर बात ना करब, तब ले सपना त बस सपना रही।
ना चाहीं जात, चाहीं काम!
अब टाइम आ गइल बा बोले के—”ना चाहीं नेता के नारा, चाहीं हमरा लइका के नौकरी। ना चाहीं मंदिर-मस्जिद के झगड़ा, चाहीं दवाई अउर पढ़ाई।
ना चाहीं ‘हमार जात-हमार अधिकार’, चाहीं ‘हमार हक-हमार विकास’!”
अब सोच बदलीं – त देश बदली!
काहे कि असली क्रांति वोट से ना, सोच से आवत ह। कोरिया संविधान बदले से ना, माइंडसेट बदले से आगे बढ़ल बा। हमार देश भी तब्बै बदलिहे, जब हम वोट डालब जाति देख के ना, सोच देख के।
अवधी में कहें त—”संविधान बनत रहीं, बदलाव त हमरे मन मं होई!”
का करब बाबू संविधान बदल के, जब आपन सोच अबहिन भी पचास साल पाछे बा?
देश त तब आगे बढ़ी, जब नेताजी के जात ना, काम पूछब!
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