डार्लिंग, धर्म कोई स्टार्टअप नहीं है! पहले ग्रंथ पढ़ो, फिर प्रवचन दो

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)

आजकल धर्म इतना “ट्रेंडिंग” हो गया है कि कुछ लोग इसे स्पिरिचुअल स्टार्टअप बना बैठे हैं। सोशल मीडिया पर दो श्लोक, तीन कहानी और चार चुटकुलों के साथ “धर्मगुरु” बनना जैसे कोई कोर्स हो गया हो। पर, डार्लिंग… धर्म कोई स्क्रिप्टेड शो नहीं है!

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धर्मग्रंथ पढ़ो, फिर प्रवचन दो

उपदेश देना जितना आसान है, धर्मग्रंथों को सही से पढ़ना उतना ही गंभीर और आवश्यक कार्य है। हर श्लोक का मतलब होता है संदर्भ सहित। लेकिन “क्लिप-बेस्ड आध्यात्म” का दौर चल पड़ा है – जहाँ श्रीमद्भगवद्गीता के गूढ़ ज्ञान को इंस्टाग्राम रील में समेटा जा रहा है। बिना गहराई के ग्यान, सिर्फ ऊपरी चकाचौंध बन जाता है।

धर्म एक जिम्मेदारी है, ब्रांडिंग नहीं

जब कोई धर्मगुरु टीका, भगवा वस्त्र और मंच पर हाई-क्वालिटी साउंड सिस्टम के साथ प्रवचन देता है – पर जब बात गहराई की आती है तो बस “भगवान से डराओ, डोनेशन बटोराओ” वाली स्क्रिप्ट निकलती है – तो धर्म के नाम पर धंधा ही तो चल रहा है। धर्म एक जिम्मेदारी है। इसका हर शब्द, हर विचार समाज की चेतना को आकार देता है। इसलिए… धर्म सिखाने से पहले खुद सीखो। वरना ग़लत व्याख्या से सिर्फ ट्रोल नहीं, तिरस्कार मिलेगा।

उपदेश देना है? पहले आत्मचिंतन करो

धर्म उपदेश देने से पहले जरूरी है कि आप आत्मचिंतन करें,

क्या आपने सभी ग्रंथ पढ़े हैं?

क्या आपने अपने जीवन में उस ज्ञान को अपनाया है?

क्या आप दिखावे से परे हैं?

यदि नहीं, तो उपदेश मत दो। वरना “कथा” कम और “कमाई” ज़्यादा दिखेगी।

धर्म के नाम पर मार्केटिंग? Not Cool, Baba Ji!

धर्म की मार्केटिंग करना, डार्लिंग, बिलकुल वैसा ही है जैसे भगवान के नाम पर डिस्काउंट कूपन बांटना! लोगों की आस्था को कैप्शन में कैद कर लेना, एक तरह से आध्यात्म का अपमान है। धर्म को पॉप स्टार की तरह पेश करना बंद कीजिए – ये भक्ति है, ब्रांडिंग नहीं।

“डार्लिंग, धर्म को धंधा मत बनाओ। अगर उपदेश देने का शौक है, तो पहले धर्म को पढ़ो, समझो, और फिर बोलो। वरना न खुद बचे रहोगे, न आस्था।”

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