
ईरान और इजरायल के रिश्ते हमेशा से तल्ख रहे हैं। लेकिन हाल के दिनों में ईरान के अंदर से ही ऐसी आवाज़ें उठने लगी हैं जो इस्लामिक गणराज्य की नीतियों के खिलाफ हैं और इजरायल के लिए समर्थन जता रही हैं। यह बदलाव किसी झटके से कम नहीं है।
ईरान बोले- इसराइल हटो बाजू! और ओआईसी ने बजाई ताली
शासन से थकी हुई जनता, अब बदलाव के लिए तैयार
आर्थिक संकट, नागरिक स्वतंत्रताओं की कमी, महिलाओं पर अत्याचार और मानवाधिकारों के उल्लंघन ने ईरानी जनता को भीतर तक झकझोर दिया है। महसा अमीनी की मौत ने इस असंतोष को उबाल दिया, और उसके बाद जो हुआ, वो आज तक थमा नहीं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, लगभग 90% ईरानी मौजूदा शासन के खिलाफ हैं और किसी भी कीमत पर बदलाव चाहते हैं।
“जब देश की जनता कहे – ‘दुश्मन ही सही, लेकिन इनसे तो बेहतर है!’ तो समझिए मामला गंभीर है!”
अंदर से इजरायल को समर्थन – यह कैसा विरोध?
ईरान की सरकार भले ही इजरायल को सबसे बड़ा दुश्मन बताती है, लेकिन ईरानी समाज में इजरायल के लिए सहानुभूति और समर्थन बढ़ता जा रहा है। हमास-इजरायल युद्ध के बाद कई ईरानी नागरिकों ने इजरायल समर्थक रैलियों में हिस्सा लिया।
सोशल मीडिया पर इजरायल के पक्ष में पोस्ट, विदेशी रैलियों में ईरानी झंडों के साथ इजरायली झंडे— ये सब आज के नए विरोध की तस्वीर हैं। “जहां सरकार कहे ‘Down with Israel’, वहीं जनता कहे ‘Dance with Israel’ – कुछ तो गड़बड़ है ख़ालिद!”
वाहिद बेहेशती की चेतावनी: “हम तैयार हैं”
ब्रिटेन में रह रहे ईरानी एक्टिविस्ट वाहिद बेहेशती ने खुलकर कहा कि जैसे ही बाहरी ताकतें शासन को नुकसान पहुंचाएंगी, “ईरान की जनता उठ खड़ी होगी और इस काम को पूरा करेगी।” उन्होंने यह भी कहा कि इजरायल के लिए लोगों का समर्थन जान जोखिम में डालकर भी जारी रहेगा।
बदलाव की भूख या बाहरी एजेंडा?
यह पूरी स्थिति बेहद संवेदनशील और पेचीदा है। जहां एक तरफ ईरानी जनता बदलाव चाहती है, वहीं दूसरी तरफ बाहरी ताकतें इस असंतोष को रणनीतिक रूप से भुना रही हैं।
सवाल ये है कि क्या यह समर्थन वाकई आम जनता की आवाज़ है या फिर कुछ खास वर्गों की रणनीति?
“अब इजरायल भी सोच रहा होगा – इतने सपोर्टर तो हमें अपने देश में भी नहीं मिलते!”