मशीनें तो चल रही हैं, पर ग्रोथ की रफ्तार थम गई है!

सैफी हुसैन
सैफी हुसैन

यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2025 में भारत की औद्योगिक उत्पादन वृद्धि दर (IIP) घटकर सिर्फ 1.2% पर आ सकती है। मार्च 2025 में यही दर 3% थी, जिससे यह साफ संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था में गतिविधियों की रफ्तार धीमी हो गई है।

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खनन और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सुस्ती का असर

इस गिरावट की मुख्य वजह है खनन और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में आई सुस्ती। अप्रैल में कोर सेक्टर की ग्रोथ घटकर सिर्फ 0.5% पर पहुंच गई, जो पिछले साल इसी समय 6.9% थी। इसमें स्टील, सीमेंट और रिफाइनरी उत्पादों की उत्पादन दर में गिरावट देखी गई।

टैरिफ नीति और वैश्विक अनिश्चितता बनी बड़ी चुनौती

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता, विशेष रूप से अमेरिकी टैरिफ घोषणाओं के कारण, भारत के निर्यात को झटका लगा है। IIP में 30-35% हिस्सा निर्यात का है, इसलिए इसके दबाव में रहने की संभावना जताई गई है।

व्यापार घाटा भी बढ़ा, मांग में कमजोरी के संकेत

अप्रैल 2025 में व्यापार घाटा बढ़कर ₹26.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो पिछले वर्ष इसी महीने में ₹19.2 अरब डॉलर था।
वहीं ई-वे बिल और टोल संग्रह में वृद्धि तो दर्ज की गई, लेकिन ऑटोमोबाइल सेक्टर और पेट्रोलियम खपत में गिरावट ने चिंता बढ़ाई है।

स्टील और सीमेंट उत्पादन में गिरावट से निर्माण क्षेत्र दबाव में

रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल में:

  • सीमेंट उत्पादन में 16.7% मासिक गिरावट

  • स्टील उत्पादन में 10% मासिक गिरावट

इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन वस्तुओं पर असर पड़ा है। यही कारण है कि इंटरमीडिएट और कैपिटल गुड्स सेक्टर में भी ठहराव देखा जा रहा है।

उपभोक्ता मांग शहरों तक सीमित, ग्रामीण इलाकों में सुस्ती

ग्रामीण मांग में कमजोरी देखी जा रही है, जबकि शहरी मांग से कुछ राहत मिल रही है। उपभोग आधारित उत्पादन में सुधार की संभावनाएं कम हैं। अनुमान है कि समग्र उपभोक्ता IIP अप्रैल में नकारात्मक ज़ोन में जा सकता है।

28 मई को जारी होंगे आधिकारिक आंकड़े

सरकार द्वारा 28 मई 2025 को अप्रैल महीने के औद्योगिक उत्पादन के आधिकारिक आंकड़े जारी किए जाएंगे। ये आंकड़े साफ तस्वीर देंगे कि भारत की विनिर्माण गति और आर्थिक स्थिरता किस दिशा में जा रही है।

आर्थिक इंजन ऑन है, लेकिन स्पीड धीमी पड़ गई है

भारत की औद्योगिक वृद्धि दर में यह गिरावट एक वॉर्निंग सिग्नल है। निर्यात, निर्माण और खपत तीनों ही मोर्चों पर दबाव बना हुआ है। जब तक नीति-निर्माता और इंडस्ट्री एक साथ मिलकर सप्लाई चेन, डिमांड और ग्लोबल रिस्क पर काम नहीं करते, तब तक IIP में दोहरे अंकों की ग्रोथ एक चुनौती ही बनी रहेगी।

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