मितरों सावधान! जिंदगीभर की कमाई, और अंत में…? सरकार के नाम!

अमित तिवारी
अमित तिवारी

आपने पूरी ज़िंदगी खून-पसीना बहाकर जो ज़मीन-जायदाद बनाई — वो एक “कानूनी चूक” की वजह से सरकार की हो जाए, ये कभी सोचा है?

चौंकिए मत, ये भारत है साहब! यहां अगर आपने वसीयत (Will) नहीं बनाई, और आपके निधन के बाद कोई वैध वारिस नहीं मिला, तो आपकी प्रॉपर्टी “जय हो सरकार” के नाम हो सकती है।

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वसीयत नहीं? तो कानूनी सिरदर्द तय है!

भारत में हर साल हजारों केस सामने आते हैं, जहां परिवार के मुखिया का निधन हो जाता है और वसीयत पीछे नहीं छोड़ते। इसके बाद शुरू होती है वो ‘फैमिली ड्रामा’ जो कोर्ट-कचहरी तक पहुंच जाता है।

“ये मकान मेरा है!”
“नहीं, पापा ने मुझे ज़्यादा प्यार किया था!”
“मम्मी की कसम, मैंने ज़्यादा सेवा की है!”

लेकिन अगर वारिसों का झगड़ा भी ना हो, और कोई वारिस ही नहीं है, तो?

कानून क्या कहता है?

अगर आप हिंदू हैं, तो आपकी संपत्ति का बंटवारा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार होगा:

पहली कैटेगरी:

  • पत्नी

  • बेटा-बेटी

  • मां

  • पोता-पोती

दूसरी कैटेगरी (अगर ऊपर कोई नहीं):

  • पिता

  • भाई-बहन

दूर के रिश्तेदार:

अगर ऊपर दोनों कैटेगरी फेल हो गई, तो Agnates और Cognates यानी दूर-दराज़ के रिश्तेदार संपत्ति के दावेदार बन सकते हैं।

और अगर कोई नहीं मिला?

तो… बधाई हो! आपकी संपत्ति सीधे सरकार के पास चली जाएगी। बिना सस्पेंस, बिना वारिस — और हां, बिना प्रॉपर्टी डिस्प्यूट के!

तो अब क्या करें?

वसीयत बनाइए। आज नहीं तो कल, लेकिन ज़रूर बनाइए।
क्योंकि “ना जाने कौन-सी गलती आखिरी हो जाए!”

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