
बिहार विधानसभा चुनाव की धूल बैठते ही बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व अब पूरी ताकत से उत्तर प्रदेश मोड में आ चुका है। 2027 के बड़े रण से पहले पार्टी चाहती है कि UP की हर गोटी शतरंज में सही जगह पर फिट हो जाए।
संघ का भी पूरा इन्वॉल्वमेंट रहेगा—क्योंकि चुनावी तैयारी में RSS बिना Wi-Fi के मोबाइल की तरह है… काम चलता ही नहीं।
UP: केंद्र की सत्ता का पावरहाउस, इसलिए तैयारी फुल-स्पीड पर
दिल्ली में चाहे जितनी रणनीति बनाई जाए, सत्ता की असली धड़कन तो यूपी से ही चलती है। इसीलिए पार्टी 2027 से पहले हर पेंच, हर जोड और हर समीकरण को ठीक से टाइट करना चाहती है।
लंबे समय से ठंडे बस्ते में पड़ा संगठनात्मक पुनर्गठन अब एक्सप्रेस स्पीड में होने वाला है।
साथ ही योगी कैबिनेट से कुछ “निष्क्रिय मोड वाले” चेहरों की छुट्टी और कुछ नए चेहरों की एंट्री भी तय मानी जा रही है।
कैबिनेट एक्सपेंशन: Caste + Geography = Perfect Political Math
सूत्र बताते हैं कि नए मंत्रियों की एंट्री का फॉर्मूला वही पुराना, लेकिन आजमाया हुआ— जातीय संतुलन + भौगोलिक प्रतिनिधित्व।
कयास है कि मिल्कीपुर और कुंदरकी के विधायकों को मौका मिल सकता है। और पंचायत चुनावों के चलते भूपेंद्र चौधरी की कैबिनेट में homecoming संभव है।
UP BJP अध्यक्ष: नया चेहरा, नया कॉम्बिनेशन
भूपेंद्र चौधरी का कार्यकाल काफी पहले खत्म हो चुका है, लेकिन संगठन में बदलाव रुका पड़ा था। अब बिहार चुनाव के खत्म होते ही नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा कभी भी हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव का भी सीधा असर यूपी पर पड़ेगा।
अगर पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बनता है, तो उसकी जातीय और क्षेत्रीय प्रोफ़ाइल के हिसाब से ही यूपी अध्यक्ष का सेलेक्शन होगा ताकि चुनावी साल में संतुलन न बिगड़े।
सबसे ज़्यादा चर्चा इस कॉम्बिनेशन की है—धर्मेंद्र प्रधान: राष्ट्रीय अध्यक्ष, केशव प्रसाद मौर्य: यूपी अध्यक्ष

राजनीति में इसे कहते हैं— “दो तीर, एक निशाना: संगठन + जातीय समीकरण दोनों फिट।”
कैबिनेट विस्तार: खाली कुर्सियाँ भी संदेश देती हैं
चुनावी वर्षों में खाली कुर्सियाँ भी राजनीति में बड़े संकेत मानी जाती हैं। यूपी में कई मंत्री पद खाली पड़े हैं, ऐसे में कैबिनेट विस्तार की संभावना बहुत मजबूत हो चुकी है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक— कुछ नेताओं को सरकार में शामिल किया जाएगा। कुछ मौजूदा मंत्रियों को संगठन की तरफ ट्रांसफर किया जा सकता है। लक्ष्य साफ है— राजनीतिक + सामाजिक संतुलन दोनों को परफेक्ट रखना।
भूपेंद्र चौधरी का संकेत: “तूफ़ान आने वाला है!”
भूपेंद्र चौधरी ने खुद साफ कहा है कि बिहार चुनाव खत्म होते ही संगठनात्मक पुनर्गठन तेज होगा, और कैबिनेट विस्तार को भी उन्होंने नकारा नहीं है। अर्थात— यूपी में अगले कुछ दिनों में कई बड़े राजनीतिक अपडेट पकड़कर रखिए।
यूपी में अब ‘मेजर पॉलिटिकल शेकअप’ फाइनल स्टेज में
कुल मिलाकर तस्वीर बिल्कुल स्पष्ट है— बिहार खत्म = अब यूपी की बारी। BJP 2027 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए पूरा सिस्टम रिबूट मोड में डाल चुकी है। संगठन, कैबिनेट, नेतृत्व—सबमें बड़ी हलचल तय है।
राजनीति में इसे कहते हैं—“चुनाव दूर है… पर तैयारी अभी से शुरू!”
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