“Court ने कहा—Governor साहब की टाइमिंग हम नहीं सेट करेंगे!”

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐसा फैसला सुनाया जिसने राजनीतिक हलकों में हलचल ही नहीं, Confusion भी बढ़ा दिया। कोर्ट ने अपने ही 8 अप्रैल वाले फैसले को पलटते हुए साफ कहा, राज्यपाल या राष्ट्रपति को विधेयकों पर कोई तय समयसीमा नहीं दी जा सकती। अगर वे समय पर फैसला न लें, तो “मानी हुई सहमति” (Deemed Assent) भी लागू नहीं होगी।

यानी सीधे शब्दों में—“Governor भी अपनी टाइमिंग से काम करेंगे, और President भी… कोर्ट इस घड़ी में अलार्म नहीं लगाएगा।”

क्या कहा संविधान पीठ ने?—“हम Executive की Power माइक्रो-मैनेज नहीं करेंगे”

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा, समयसीमा तय करना Constitution के खिलाफ है। Deemed Assent लागू करना Executive की Powers में दखल होगा। किसी विधेयक पर राष्ट्रपति/राज्यपाल की कार्रवाई को अदालत चुनौती नहीं दे सकती। हाँ—अगर राज्यपाल लंबे समय तक कुछ न करें तो अदालत सिर्फ इतना कह सकती है कि “कृपया अनुच्छेद 200 के तहत उचित समय में निर्णय लें।” 

लेकिन उनके निर्णय क्यों देर से आए, कैसे आए, अच्छे हैं या नहीं— इस पर कोर्ट कोई डिस्कशन नहीं करेगा।

यह मामला कैसे आया?—जब राष्ट्रपति ने SC से पूछा…

यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत आया है। इस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांग सकती हैं। यह संदर्भ तब भेजा गया जब तमिलनाडु बनाम राज्यपाल वाले केस में SC ने कहा था, “राज्यपाल संवैधानिक चुप्पी का दुरुपयोग नहीं कर सकते।

उचित समय में फैसला देना अनिवार्य है।”

अब SC का ताज़ा फैसला— उसी फैसले को आंशिक रूप से गलत बताते हुए पलट देता है।

अब राज्यों पर क्या असर पड़ेगा?

यह फैसला कई राज्यों—तमिलनाडु, पंजाब, केरल, तेलंगाना—जहाँ बिल लंबे समय तक राज्यपाल के पास अटके रहते हैं, वहाँ बड़ा प्रभाव डालेगा।

सियासी भाषा में कहा जाए तो— “अब राज्य सरकारें टाइमर लेकर राजभवन नहीं जाएँगी… और राज्यपाल भी बिना दबाव आराम से फाइलों पर फैसला करेंगे।”

संवैधानिक बहस फिर गर्म—सेंट्रल vs स्टेट डायनामिक्स

यह फैसला एक बार फिर बहस को खोल देता है कि— भारत में राज्यपाल की भूमिका सिर्फ रबर-स्टैंप है या सक्रिय Constitutional Authority? राष्ट्रपति की Powers Symbolic ज़्यादा, Substantive कम? और अदालत की सीमाएँ कहाँ तक हैं?

देश की राजनीति में यह फैसला आने वाले महीनों में काफी सुर्खियाँ बटोरने वाला है।

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