
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ, जब प्रशासन छोड़कर मठ की परंपरा में उतरते हैं, तो सख्ती की जगह संवेदनशीलता और संस्कार बोलने लगते हैं। इस बार गोवर्धन पूजा पर, उन्होंने खीर का पहला कौर एक नन्हे शिशु को खुद अपने हाथों से खिलाया — यानी ‘अन्नदाता’ भी वही, और ‘अभिभावक’ भी वही।
गोरखनाथ मंदिर में जब CM योगी ने गोसेवा के बाद नन्हे बालक को गोदी में उठाया, तिलक लगाया और फिर अन्नप्राशन कराया — तो दृश्य देख सबकी आंखें नम हो गईं।
“सिर्फ एक मुख्यमंत्री नहीं, एक अभिभावक की भूमिका निभा रहे हैं,” यह कहने में अब जनता को कोई झिझक नहीं।
गोसेवा और गौ-पूजन: आध्यात्मिकता + इकोनॉमी का योगी मॉडल
मुख्यमंत्री ने मंदिर की गोशाला में गौ माता को विशेष भोजन कराया, उनका पूजन किया और बोला, “भारत की समृद्धि का आधार – भारतीय गौवंश है।”
अब गौशालाएं सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि बायो कंपोस्ट से इथेनॉल तक उत्पादन के केंद्र बनती जा रही हैं। योगी ने साफ किया –
“गोबर में भी अब सरकार को सोना दिख रहा है।”

परंपरा में राजनीति नहीं, संस्कृति है
योगी आदित्यनाथ का यह भावुक रूप बता रहा था कि वो केवल सत्ताधारी नहीं, संस्कृति के धारक भी हैं। जहां एक तरफ वो माफियाओं को नेस्तनाबूद कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शिशुओं को खीर खिला रहे हैं।
संदेश साफ है: धर्म, गौ, और जन सेवा तीनों एक साथ
CM योगी ने कहा, “गोवर्धन पूजा केवल पर्व नहीं, यह भारतीय जीवनशैली की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और कृषि का त्रिवेणी संगम है।”
शायद यही वजह है कि गोवर्धन पूजा अब सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि गवर्नेंस विद कल्चर का ब्रांड बन चुकी है।
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