“बंगाल में दिवाली या बम धमाका? पुलिस बोली – बस बहुत हुआ

Ajay Gupta
Ajay Gupta

पश्चिम बंगाल की दिवाली और काली पूजा की रात वैसे तो रौशनी से जगमगा रही थी, लेकिन पुलिस रिकॉर्ड्स में वही रात अंधेरी और धमाकेदार निकली। राज्यभर में 153 लोग गिरफ्तार हुए — कारण? अवैध पटाखे और सार्वजनिक उपद्रव

पुलिस अधिकारी ने बताया कि इनमें 43 लोग प्रतिबंधित पटाखे फोड़ते पकड़े गए, जबकि बाकी 110 लोग “मूड में ज़्यादा आ गए” — यानी उपद्रव मचाने के आरोप में गिरफ़्तार।

कोलकाता में ग्रीन पटाखे का रंग लाल निकला

राजधानी कोलकाता में स्थिति थोड़ी ज्यादा ‘धमाकेदार’ रही। यहाँ 16 लोगों की गिरफ्तारी सिर्फ़ इसलिए हुई क्योंकि उन्होंने “ग्रीन पटाखे” की परिभाषा को बहुत ही क्रिएटिव तरीके से समझा। पुलिस ने पूरे राज्य में छापा मारकर 1000 किलो से ज़्यादा अवैध पटाखे जब्त किए।

कोर्ट का आदेश, पर लोगों की ‘मस्ती मोड ऑन’

कलकत्ता हाई कोर्ट ने दिवाली से पहले ही स्पष्ट निर्देश दिए थे — “काली पूजा और दिवाली के दौरान वायु और ध्वनि प्रदूषण पर सख्त नियंत्रण रहे।”

कोर्ट ने कहा था कि 8 से 10 बजे रात तक ही ग्रीन पटाखे चलेंगे। पर बंगाल की जनता बोली — “हमारा टाइम हमारा नियम!”
नतीजा — रातभर आसमान रंगीन, और सुबह थानों में लाइन।

ग्रीन पटाखे का ग्राउंड रिपोर्ट — लोग बोले ‘ये तो लाल निकला!’

पुलिस और पर्यावरण विभाग ने “ग्रीन पटाखे” का प्रयोग बढ़ावा देने की कोशिश की, पर दुकानों में ग्रीन रैपर में रेड बम मिल गया। मतलब — पैकिंग में इको-फ्रेंडली, असर में ईको-ब्लास्टिंग! 

छठ पूजा पर फिर से दो घंटे का टाइम स्लॉट

अब पुलिस ने अगली चेतावनी भी जारी कर दी — 28 नवंबर को छठ पूजा के दौरान सुबह 6 से 8 बजे तक ही पटाखे की अनुमति होगी।
लेकिन जनता की मानसिकता जानिए — “हम दो घंटे में ही सब उड़ा देंगे!”
(और फिर पुलिस बोलेगी — “फिर वही तमाशा, फिर वही धमाका।”)

वायु प्रदूषण बनाम त्योहार का जोश

जहां एक ओर प्रशासन हवा साफ़ रखने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर लोग कह रहे हैं — “बिना धुएँ के दिवाली, अधूरी लगती है।”
इस साल पटाखों ने सिर्फ़ आसमान नहीं, बल्कि कोर्ट के आदेशों को भी जला दिया। कह सकते हैं — “Air Quality Index भी अब Therapy ले रहा है।”

नियमों से बड़ी है आदत

यह मामला केवल बंगाल का नहीं, पूरे देश की आदत का है। नियम बनते हैं फोटो खिंचवाने के लिए, तोड़े जाते हैं जश्न मनाने के लिए।
हर साल वही बयान — “सख्ती होगी”, और हर साल वही सीन — “सायरन से तेज़ फुलझड़ी।”

दिवाली में सीमित धमाका ही असली रौनक

त्योहार खुशी के लिए है, न कि Noise Pollution Contest के लिए। अगर बंगाल की दिवाली में थोड़ा संयम आ जाए, तो रोशनी और साफ हवा दोनों टिक सकती हैं।
वरना अगले साल की दिवाली रिपोर्ट फिर यही लिखेगी — “रोशनी से ज़्यादा आवाज़ हुई, पूजा से ज़्यादा पुलिस लगी!”

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