उदित राज ने उठाए सवाल: अंतरिक्ष में दलित क्यों नहीं गया?

सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक
सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक

जब पूरा देश गर्व से सीना फुलाए बैठा था कि भारत का बेटा शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष की ऊँचाइयों से लौट आया है, तभी कांग्रेस नेता उदित राज ने राजनीतिक ऑक्सीजन के लिए एक नया बटन दबा दिया — “शुक्ला क्यों? कोई दलित क्यों नहीं?”

“ज्ञान का फैलाव ठीक है, लेकिन आरक्षण की कक्षा छोड़कर कोई उड़ान कैसे ले सकता है?”

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उदित राज बोले – चिप्स, चंद्रयान और चांस सब बंटवारे से मिलना चाहिए

उदित राज ने कहा:

“मैं शुभकामनाएं देता हूं, लेकिन क्या दलितों के पास अब भी कोई सीट नहीं? अंतरिक्ष में भी नहीं?”

उन्होंने ये भी कहा कि शुक्ला को NASA ने कोई राष्ट्रीय परीक्षा पास कराकर नहीं चुना, तो फिर जातिगत संतुलन का मौका क्यों गंवाया गया?

“SC-ST अभी भी पृथ्वी पर घूम रहे हैं और शुक्ला अंतरिक्ष में? ये ब्राह्मणिक छल नहीं तो और क्या है!” – सियासी ग्रहण का व्याख्यान

कौन हैं शुभांशु शुक्ला? और क्या वाकई ‘योग्यता’ से चुने गए थे?

  • जन्म: 1985, लखनऊ

  • स्कूल: CMS अलीगंज

  • डिग्री: NDA से स्नातक

  • कैरियर: भारतीय वायुसेना में 2006 से

  • फ्लाइंग आवर: 2000+ घंटे फाइटर जेट उड़ाने का अनुभव

  • चयन: गगनयान के लिए ISRO द्वारा 2019 में और फिर Axiom-4 के लिए NASA और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा

कम शब्दों में: वो चुने गए क्योंकि वो ‘हवाई बात’ नहीं, ‘हवाई जहाज’ उड़ाते हैं।

ISRO का मिशन, लेकिन जाति का एंगल ज़रूरी है क्या?

ISRO ने इस मिशन में ₹550 करोड़ खर्च किए ताकि भारत को गगनयान के लिए जरूरी तकनीकी और मानव अनुभव मिल सके।

अब सवाल ये है कि क्या इस पर जाति आधारित चयन प्रणाली भी लागू होनी चाहिए थी?

“अगर ISRO भी आरक्षण से एस्ट्रोनॉट चुने, तो एक दिन चंद्रमा पर भी आरक्षण कोटा लागू होगा।”

सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया – ‘अब क्या मंगल पर भी जात पूछनी है?’

  • एक यूजर ने लिखा:
    “अब अंतरिक्ष में जाने से पहले जात प्रमाण पत्र की ज़रूरत है? क्या रॉकेट के साथ जाती भी जाएगी?”

  • दूसरा बोला:
    “उदित जी को अगली बार मंगल भेज दो, शायद वहां सियासी ऑक्सीजन मिले!”

अंतरिक्ष में कोई जाती नहीं होती, पर ज़मीन पर राजनीति की गुरुत्वाकर्षण शक्ति ज़रूर है

शुभांशु शुक्ला की यात्रा तकनीकी उपलब्धि है, न कि जातीय गिनती का मुद्दा। लेकिन भारत में, जहाँ शौचालय से संसद तक जाति का एंगल जुड़ जाता है, वहाँ अंतरिक्ष यात्रा भी इस राजनीति से नहीं बच सकी।

जिन्हें उड़ान की तैयारी करनी चाहिए, वो अब भी पूछ रहे हैं – जात क्या है?

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