
तीन घंटे, दो महाशक्तियों के नेता, और एक उम्मीद कि शायद अब यूक्रेन युद्ध पर कुछ ठोस निकलेगा… लेकिन निकला क्या?
ट्रंप बोले – “कोई समझौता तब तक नहीं होता, जब तक असली में नहीं होता।”
मतलब ये कि meeting तो हुई, handshake भी हुआ, पर deal वाली बात अभी ‘pending’ है।
वन-ऑन-वन से थ्री-ऑन-थ्री – पर गेम अभी भी ड्रा!
शुरुआत में ट्रंप-पुतिन की ‘प्योर प्राइवेट’ मुलाक़ात की प्लानिंग थी, लेकिन फिर थ्री-ऑन-थ्री फॉर्मेट में बात हुई। यानी दोनों के साथ दो-दो खुफिया सलाहकार – जो बाद में शायद खुद सोच रहे होंगे, “हम आए थे किसलिए?”
अमेरिका से: मार्को रुबियो और स्टीव विटकॉफ़
रूस से: सर्गेई लावरोव और यूरी उशाकोव
ज़ेलेंस्की? – Nope. न आमंत्रण, न मौजूदगी।
पुतिन का नया ‘शब्द-जाल’: “मूल कारण ख़त्म करने होंगे”
पुतिन बोले: “संघर्ष को समाप्त करना चाहते हैं, पर पहले कारण तो दूर हों!”
अब ये “मूल कारण” कौन सा है – NATO का विस्तार, यूक्रेन की जिद, या बस टाइम पास – ये तो सिर्फ पुतिन ही जानते हैं।
उन्होंने ट्रंप को “पड़ोसी” कहकर संबोधित किया – शायद इसलिए क्योंकि अलास्का और साइबेरिया भौगोलिक रूप से आस-पास हैं। डिप्लोमेसी में भी जोक चलता है!
प्रेस कॉन्फ्रेंस या प्री-रिकॉर्डेड Podcast?
हाँ, दोनों नेता मीडिया के सामने आए, बयान भी दिए, पर सवालों से ऐसे बच निकले जैसे बच्चे गणित के टेस्ट से।
पुतिन बोले: अगली मीटिंग मॉस्को में!
ट्रंप बोले: “ठीक है व्लादिमीर, फिर मिलते हैं!”
Q&A से डर लगता है शायद…
भारत की टेंशन: “तेल का कनेक्शन, टैरिफ का झटका”
ट्रंप साहब भारत से नाराज़ हैं।
क्यों? क्योंकि भारत रूस से तेल खरीद रहा है और इससे पुतिन को “ज्यादा जूस” मिल रहा है।

नतीजा: 7 अगस्त को ट्रंप ने टैरिफ 25% से 50% कर दिया।
अब ये तो तेल का सौदा है, पर झटका भारतीय इंडस्ट्री और आम जनता को लग सकता है।
भारत का संतुलन भरा जवाब:
भारतीय विदेश मंत्रालय बोला –
“शांति की पहल का स्वागत है, जैसा मोदी जी कहते हैं – ‘ये युद्ध का युग नहीं है’।”
कूटनीति की भाषा में यह “हम सब जानते हैं, पर अभी बोलेंगे नहीं” वाली रणनीति है।
बातों-बातों में वॉर की बात, लेकिन वार्ता का वार खाली गया
ट्रंप बोले: “हम वहां तक नहीं पहुंचे।”
पुतिन बोले: “शुरुआत अच्छी हुई।”
जेलेंस्की बोले: “अभी तो कुछ हुआ ही नहीं।”
और दुनिया बोले – “तो फिर तीन घंटे किया क्या?”
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कोई युद्धविराम नहीं हुआ, लेकिन बातचीत का चैनल खुला है।
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भारत फंसा दो मोर्चों पर – अमेरिका से टैरिफ में, रूस से रिश्तों में।
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पुतिन को मंच मिला, लेकिन ट्रंप को ताज नहीं।
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अगली मुलाकात मॉस्को में होगी, लेकिन सवाल ये है – क्या अगली बार सच में कुछ होगा?
