मैं लखनऊ हूँ — तहज़ीब की ज़ुबान, नवाबों की जान। कभी मेरी गलियाँ पतली थीं, मगर दिल बड़े थे। ना हॉर्न का शोर था, ना धुएं का जहर। आज चौड़ी सड़कें हैं, लेकिन हालत ये है कि गाड़ियाँ रेंगती हैं, और लोग झुंझलाते हैं। बैरिकेडिंग का खेल: ट्रैफिक लाइट गई तेल लेने जब बैरिकेडिंग ही लगानी थी, तो ये ट्रैफिक लाइट्स क्यों टाँगी गईं?बुद्धा पार्क से हनुमंत धाम, हजरतगंज से लेकर केडी सिंह बाबू स्टेडियम तक, नहरिया जाम- हर 500 मीटर पर लगता है नया जाम। कट कभी खुलता है,…
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